इस साल रथयात्रा का आरंभ 1 जुलाई से हो रहा है. पुरी में जगन्नाथ मंदिर से तीन सजे-धजे रथ निकलते हैं. जानिए रथयात्रा से जुड़ी ख़ास बातें..!
आज से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा ओडिशा के पुरी में बड़ी धूमधाम से शुरू हुई। यात्रा कोरोना काल में भी चल रही थी, लेकिन कोरोना के चलते रथयात्रा का त्यौहार ज्यादा धूमधाम से नहीं मनाया गया। पुरी में रथयात्रा आज यानी 1 जुलाई से शुरू हुई, जो 12 जुलाई तक चलेगी।
हर साल आषाढ़ महीने के दूसरे दिन रथयात्रा शुरू होती है और यह पुरी के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। जुलूस को देखने के लिए काफी संख्या में लोग आते हैं। कहा जाता है कि एक समाधि के सामने भगवान जगन्नाथ की बारात को रोका जाता है।
इसमें सवाल यह है कि भगवान जगन्नाथ की बारात को समाधि के सामने क्यों रोका जाता है और ऐसा करने के पीछे की कहानी क्या है। तो आज हम आपको रथयात्रा के बारे में बता रहे हैं और साथ ही हम आपको बताएंगे कि समाधि के सामने भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को रोकने के पीछे क्या कहानी है।
#WATCH | The Jagannath Rath Yatra begins in Puri, Odisha with much fanfare. The participation of devotees in the Rath Yatra has been allowed this time after a gap of two years following the COVID pandemic. pic.twitter.com/oODjwSLma0
— ANI (@ANI) July 1, 2022
कहा जाता है कि इस रथयात्रा के दौरान भगवान का रथ समाधि पर रोका जाता है। ग्रैंड रोड पर इससे मंदिर लगभग 200 मीटर आगे है और रथ के गुजरने पर दाईं ओर एक समाधि है, जहां इसे रोका जाता है। कुछ देर यहीं रुकने के बाद रथ आगे बढ़ता है।
अब हम जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ का रथ यहां क्यों रुका..! इसके पीछे क्या मिथक हैं? जहाँगीर के समय एक सूबेदार का विवाह एक ब्राह्मण विधवा से हुआ था और उसका एक पुत्र था जिसका नाम सालबेग था। हिंदू मां होने के नाते सालबेग ने शुरू से ही भगवान जगन्नाथ पंथ की ओर रुख किया था। सालबेग को भगवान जगन्नाथ से बहुत आस्था थी, लेकिन वे मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकें।
जानकारों के अनुसार, सालबेग भी लंबे समय तक वृंदावन में रहें और रथयात्रा में शामिल होने के लिए ओडिशा जाने पर बीमार पड़ गए। इसके बाद सालबेग ने दिल से भगवान को याद किया और एक बार उन्हें देखने की इच्छा जाहिर की। इससे भगवान जगन्नाथ प्रसन्न हुए और उनका रथ स्वयं सालबेग की कुटिया के सामने रुक गया। वहां सालबेग ने भगवान की पूजा-अर्चना की। सालबेग की पूजा पूरी होने के बाद भगवान जगन्नाथ का रथ आगे बढ़ा। यह परंपरा आज भी जारी है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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