बौद्धों ने धर्म को स्त्री संज्ञक माना है, इस दृष्टि से जगन्नाथ और सुभद्रा का कैसा मेल यहां बताया गया है- यह उल्लेखनीय है। जबकि शिव-पार्वती, विष्णु-लक्ष्मी और ब्रह्मा सावित्री आदि का चित्रांकन पुरुष और प्रकृति के रूप में हुआ है, तब यह भाई-बहन का दिग्दर्शन यहाँ बौद्धों की दृष्टि से ही ठीक बैठ सकता है।
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा तो प्रसिद्ध है ही। फाहियान तक ने इसका विशद वर्णन किया है। मन्दिर का विमान हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों से शोभित है। राहु, जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा, हनुमान आदि की भव्य मूर्तियां अंकित हैं।
कहीं-कहीं पर कालिया- दमन लीला, गरुड़-वाहन, नारायण, नृसिंह- लक्ष्मी, हरि-हर, गोपाल कृष्ण, गोवर्धन-लीला, राम-रावण युद्ध का दृश्य आदि ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृश्यों का सुन्दर समावेश है। वामन, वराह और नरसिंह आदि की मूर्तियाँ हैं। विमान की पूरी ऊंचाई 214 फुट 8 इंच है।
जगन्नाथ मन्दिर का जगमोहन पंचरथ पीड़ देवल है। 6 फुट 3 इंच ऊँचे पीठ पर यह स्थित है। जगमोहन के उत्तरी पार्श्व में मंदिर का कोश सुरक्षित रहता है। जगमोहन से ही लगा हुआ नट मंदिर है, जो भुवनेश्वर के लिंगराज के नट मंदिर से समान है। नट दर की छत के आधार 16 स्तम्भ हैं और यह 67 फुट चौड़ा है।
जगन्नाथ मंदिर का भोग-मंडप भी पंचरथ पीड़ देवली है और पीतवर्ण पत्थर का बना हुआ है। इसका उपपीठ 6 फुट 4 इंच ऊँचा और पाद-पीठ 1 फुट 5 इंच है।
जगन्नाथ मन्दिर के आस-पास बहुत-से मंदिर हैं, जिनमें मुक्ति-मंडप, विमला देवी का मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, धर्मराज ( सूर्यनारायण) का मंदिर, पातालेश्वर, लोकनाथ, मार्कण्डेश्वर, सत्यवादी मन्दिर आदि अत्यंत प्रसिद्ध है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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