 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को हुआ था। इसी की याद में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बड़े उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण जोकि विष्णु के आठवें अवतार थे। कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में जन्म लिया। इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा भक्ति के रंगों में सज जाती है। जहां पर लोग दूर-दूर से भगवान श्री कृष्ण की छवि को देखने के लिए मथुरा पहुंचते हैं। मंदिरों को खासतौर पर सजाया जाता है।
जन्माष्टमी में सभी स्त्रियों व पुरुष बारह बजे तक कीर्तन करते हैं व व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में श्री कृष्ण की झांकियां तथा झूला झुलाया जाता है। रासलीला का आयोजन होता है। विष्णु पुराण के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी नक्षत्र में जब कृष्ण जन्माष्टमी हो तो उसमें कृष्ण पूजा से तीनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
ब्रज मंडल में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन भाद्रपद कृष्ण नवमी मनाई है। श्री कृष्ण के जन्म लेने के उपलक्ष में बड़े आनंद तथा मंगल के साथ भगवान कृष्ण को हल्दी, दही, तेल, गुलाब, मक्खन, केसर, कपूर आदि का लेप कर सजाया है व धुन बजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं तथा सारा विश्व आनंद व उमंग से भर जाता है।
6 या 7 सितंबर कब है जन्माष्टमी 2023
गृहस्थ जीवन वालों को 6 सितंबर को जन्माष्टमी मनाना शुभ रहेगा। इस दिन रोहिणी नक्षत्र और रात्रि पूजा में पूजा का शुभ मुहूर्त भी बन रहा है। बाल गोपाल का जन्म रात में ही हुआ था। वहीं हिन्दू पंचांग के अनुसार 7 सितम्बर के दिन वैष्णव संप्रदाय के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे। साधु, संत और सन्यासियों में कृष्ण की पूजा का अलग विधान है इस दिन दही हांडी (Dahi Handi 2023) उत्सव भी मनेगा।
जन्माष्टमी 2023 रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ- 06 सितम्बर 2023, सुबह 09:20 बजे,
रोहिणी नक्षत्र समाप्त- 07 सितम्बर 2023, सुबह 10:25 बजे,
जन्माष्टमी 2023 पूजा मुहूर्त-
श्रीकृष्ण पूजा का समय- 6 सितम्बर 2023, रात्रि 11.57 - 07 सितम्बर 2023, रात्रि 12:42
पूजा अवधि- 46 मिनट
कृष्ण जन्माष्टमी 2023: 6 सितम्बर को रोहिणी नक्षत्र में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। इस पवित्र दिन का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक होता है, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यह खास अवसर भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे ध्यान, पूजा, और भक्ति से मनाया जाता है।
जन्माष्टमी की पूजा विधि-
पूजा सामग्री की तैयारी: पूजा की तैयारी के लिए आपको भगवान कृष्ण की मूर्ति, फूल, फल, दीपक, धूप, अगरबत्ती, अक्षत, गंध, सिंदूर, मिश्री, दही, मक्खन, पानी, और पूजा के कपड़े की आवश्यकता होती है।
पूजा स्थल की तैयारी: एक शुद्ध और पवित्र स्थल पर पूजा की तैयारी करें, जहां आप भगवान कृष्ण की मूर्ति को सजाकर रखें।
पूजा आरंभ: पूजा की शुरुआत करने के लिए भगवान गणेश की पूजा करें और उन्हें प्रसन्न करें। इसके बाद, भगवान कृष्ण की मूर्ति को सजाकर पूजें।
पूजा अर्चना: मूर्तियों को धूप, दीपक, अगरबत्ती, फूल, दाना, अक्षत, दही, गंध, सिंदूर, मिश्री, दही, और मक्खन के साथ पूजें। इसके बाद, भगवान कृष्ण के मंत्रों का जाप करें, जैसे कि "ॐ कृष्णाय नमः" या "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"।
रात का भोजन: जन्माष्टमी के दिन रात को भगवान कृष्ण के लाल जी के लिए खास भोजन (माखन मिश्री वाला भोजन) बनाएं और पूजा के बाद उन्हें अर्पण करें।
मिश्री की टुकड़ी: जन्माष्टमी के दिन रात को, बाल कृष्ण को पालने वाले जीवों के लिए एक बड़ी मिश्री की टुकड़ी बचाएं। इसका परंपरागत नाम "माखन चोरी" होता है, जिसमें बच्चे कृष्ण की शरारत के साथ मिश्री चुराने का प्रयास करते हैं।
आरती और संगीत: रात के समय, भगवान कृष्ण की आरती करें और भक्ति गीत गाए।
जागरण: जन्माष्टमी की रात, भक्त जागकर भगवान कृष्ण की खास विधि से पूजा करते हैं और उनके कथा कथन करते हैं।
दर्शन और प्रसाद: जन्माष्टमी के दिन, भक्तगण दर्शन करने आते हैं और पूजा के प्रसाद को लेकर वापस जाते हैं।
जन्माष्टमी के दिन, भगवान कृष्ण के जन्म के महत्व को समझकर आप इस पवित्र दिन को ध्यान, पूजा, और भक्ति से मनाकर अपने जीवन को सुखमय और धार्मिक बना सकते हैं।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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