काल भैरव को शिव जी का अंश माना जाता है, वे भोलेनाथ के पांचवे अवतार हैं। भैरव के दो स्वरूप हैं एक बटुक भैरव, जो शिव के बाल रूप माने जाते हैं। ये सौम्य रूप में प्रसिद्ध है। वहीं दूसरे हैं काल भैरव जिन्हें दंडनायक माना गया है।
अनिष्ट करने वालों को काल भैरव का प्रकोप झेलना पड़ता लेकिन जिस पर वह प्रसन्न हो जाए उसे कभी नकारात्मक शक्तियां, ऊपरी बाधाएं और भूत-प्रेत जैसी समस्याएं परेशान नहीं करती।
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है।
आइए जानते हैं काल भैरव के जन्म की कथा ..
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में कौन सबसे श्रेष्ठ है इसको लेकर बहस छिड़ गई। सभी देवताओं को बुलाकर यह पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? देवताओं ने अपने विचार व्यक्त किए जिसका समर्थन विष्णु जी और भगवान शिव ने किया लेकिन ब्रह्मा जी ने इसके विपरीत शिव जी से अपशब्द कह दिए।
भगवान शिव इस बात पर क्रोधित हो गए और उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए।
भैरव ने भी क्रोध में आकर ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरव जी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को 'महाकालेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति भी कहते हैं।
काल भैरव को प्रसन्न करने के उपाय-
शास्त्रों में काल भैरव का वाहन कुत्ता माना गया है। कहा जाता है कि यदि काल भैरव को प्रसन्न करना है, तो इनकी जयंती के दिन काले कुत्ते को भोजन खिलाना करना चाहिए। वहीं जो इस दिन मध्य रात्रि में चौमुखी दीपक लगाकर भैरव चालीसा का पाठ करता है, उसके जीवन में राहु के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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