 Published By:दिनेश मालवीय
 Published By:दिनेश मालवीय
					 
					
                    
हम सभी ने अलग-अलग संदर्भों में ईश्वर के क्रमशः दस और चौबीस अवतारों के विषय में काफी पढ़-सुन रखा है. चौबीस अवतारों के बारे में भले ही कम लोगों को जानकारी हो, लेकिन दस अवतारों के विषय में काफी लोग जानते हैं. आज के समय में सबसे अधिक उत्सुकता एक ऐसे अवतार के विषय में है, जो कलियुग को समाप्त कर फिर से सत्ययुग की स्थापना करेगा. कलियुग के सभी क्लेशों और कठिनाइयों का निवारण होगा और यह दुनिया पूरी तरह बदल जाएगी. सनातन धर्म के अनुसार जब तक प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं हो, तब तक शास्त्र ही प्रमाण होते हैं. हमारे शास्त्रों में कल्की अवतार का उल्लेख मिलता है. इस विषय में महाभारत में भी वर्णन उपलब्ध है.
जब पाण्डव वनवास कर रहे थे, तो उस समय के सर्वश्रेष्ठ संत, ज्ञानी और ऋषि-मुनि उनसे मिलने आया करते थे. उन लोगों का पाण्डवों, विशेषकर धर्मराज युधिष्ठिर से बहुत सत्संग जमता था. उनके प्रश्नोत्तरों में बहुत गूढ़ ज्ञान मिलता है. एक बार महर्षि मारकंडेय युधिष्ठिर से मिलने आये. युधिष्ठिर ने उन परम ज्ञानी महात्मा से बड़े सुंदर प्रश्न किये, जिनके उन्होंने समाधानकारी उत्तर दिये. युधिष्ठिर ने कलियुग में व्याप्त अनाचार, दुराचार और बहुत भयानक बुराइयों पर चिन्ता जताते हुए पूछा, कि इनका अंत कैसे होगा? मारकंडेयजी ने कहा, कि इस घोर कलियुग का अंत भगवान् के कल्की अवतार द्वारा होगा.
युगांत और भगवान् कल्की के अवतार के समय लोक के अभ्युदय के लिए फिर से अनायास ही दैव अनुकूल होगा. जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक साथ पुष्य नक्श्तर और कर्क राशि में पदार्पण करेंगे. तब सत्ययुग का प्रारंभ होगा. उस समय मेघ समय पर वर्षा करने लगेगा. नक्षत्र शुभ और तेजस्वी हो जाएँगे. ग्रह प्रदक्षिणा भाव से अनुकूल गति का आश्रय लेकर अपने पथ पर अग्रसर होंगे. उस समय सबका मंगल होगा. देश में सुकाल आएगा. आरोग्य का विस्तार होगा. रोग-व्याधि का नाम भी नहीं होगा.
इस विषय में युधिष्ठिर की जिज्ञासा को शांत करते हुए, ऋषि ने बताया, कि युगांत के समय काल की प्रेरणा से संभल नामक गाँव में किसी मंगलमय गृह में एक महान शक्तिशाली बालक प्रकट होगा. उस बालक का नाम विष्णुयशा कल्की होगा. वह महान बुद्धि और पराक्रम से संपन्न महात्मा सदाचारी और प्रजावर्ग का हितैषी होगा. वह उदार बुद्धि का, तेजस्वी और बहुत करुणामय होगा. वह नूतन सत्य युग का प्रवर्तन करेगा. वह संसार में हर जगह फैले हुए नीच स्वाभाव वाले म्लेच्छों का पूरी तरह नाश कर डालेगा.
मारकंडेयजी ने कहा, कि हे युधिष्ठिर! उस समय चोर-डाकुओं और म्लेच्छों का विनाश कर भगवान् कल्की अश्वमेध नामक महायज्ञ का अनुष्ठान करेंगे. उनका यश तथा कर्म सभी परम पावन होंगे. वह ब्रह्माजी की चलायी हुयी मंगलमयी मर्यादाओं की स्थापना करके तपस्या के लिए रमणीय वन में प्रवेश करेंगे. फिर इस जगत के निवासी मनुष्य उनके शील-स्वभाव का अनुकरण करेंगे. इस प्रकार सत्ययुग में दस्युदल का विनाश हो जाने पर संसार का मंगल होगा. कल्की हमेशा दस्युओं का व्हाध करने को तत्पर रहते हुए धरती पर विचरते रहंगे और अपने द्वारा जीते हुए देशों में काले मृगचर्म, शक्ति, त्रिशूल और अन्य अस्त्र-शस्त्रों की स्थापना कर श्रेष्ठ लोगों को यथोचित सम्मान देंगे.
उस समय चोर और लुटेरे दर्दभरी वाणी में “हाय मैया”, “हाय बाप” आदि कहकर ज़ोर-ज़ोर से चीत्कार करेंगे. भगवान् कल्की उनका विनाश कर डालेंगे. धर्म की वृद्धि होने लगेगी. मनुष्य सत्यपरायण होंगे. जलाशयों और धर्मशालाओं के साथ ही देवमंदिरों का निर्माण होगा. आश्रम पाखंडियों से रहित होंगे. ब्राहमण साधु-स्वभाव के होंगे. वे प्रसन्नतापूर्वक जपयज्ञ में संलग्न रहेंगे. मुनि लोग तपस्या में तत्पर रहेंगे. खेतों में बोये जाने वाले बीज अच्छी तरह उगेंगे. सभी ऋतुओं में सभी प्रकार के अनाज उत्पन्न होंगे. लोग दान, व्रत और नियमों का पालन करेंगे.
सत्ययुग में वैश्य सदा न्यायपूर्ण व्यापार करने वाले होंगे. ब्राह्मण यजन-याजन, अध्ययन-अध्यापन, दान अरु प्रतिग्रह, इन छह कर्मों में तत्पर रहेंगे. क्षत्रिय बल-पराक्रम में अनुराग रखेंगे. शूद्र सभी वर्णों की योथोचित सेवा करेंगे. इस प्रकार चर्चा के बाद मारकंडेयजी ने युधिष्ठिर को धर्म में रत रहने का सुझाव दिया और कभी किसीका तिरस्कार नहीं करने की शिक्षा दी. युधिष्ठिर ने पूछा, कि प्रजा की रक्षा करते हुए किस धर्म में स्थित रहना चाहिए? मेरा व्यवहार और बर्ताव कैसा हो, जिससे मैं स्वधर्म से कभी अलग नहीं होऊँ. मारकंडेयजी ने कहा, कि तुम सब प्राणियों पर दया करो. सबके हितैषी बने रहो. सब पर प्रेमभाव रखो और किसी में दोषदृष्टि मत रखो.
यदि प्रमादवश तुम्हारे द्वारा किसीके प्रति कोई अनुचित व्यवहार हो गया हो, तो उसे अच्छी प्रकार दान से संतुष्ट करके वश में करो. मैं सबका स्वामी हूँ, ऐसा अहंकार कभी पास भी नहीं आने दो. मारकंडेयजी ने कहा, कि मैंने तुम्हें जो धर्म बताया है, इसका पालन भूतकाल में भी हुआ है. भविष्यकाल में भी इसका पालन होना चाहिए. विद्वान लोग काल से पीड़ित होने पर भी कभी मोह में नहीं पड़ते. काल सम्पूर्ण देवताओं पर भी अपना भाव डालता है. काल से प्रेरित होकर यह सारी प्रजा मोहग्रस्त होती है.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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