Published By:धर्म पुराण डेस्क

एक देहाती वनस्पति कालमेघ, कल्पनाथ

अर्जुन राज- 

कल्पनाथ एक ऐसी बूटी है जिसका नाम ज्यादातर लोग नहीं जानते, कालमेघ के नाम से प्रसिद्ध यह बूटी वैद्यों और औषधि विक्रेताओं के यहाँ खूब प्रयोग होती है। इसका प्रयोग कई प्रकार के रोगों की चिकित्सा में किया जाता है।

नाम-

संस्कृत : भूनिम्ब, कालमेघ, 

हिन्दी : कालमेघ, कल्पनाथ, 

मराठी : ओलि किरिआत, 

गुजराती : करियातु, 

बंगला : कालमेघ, 

फारसी : नैनेहवन्दी, 

अंग्रेजी : कालमेघ (Kalmegh), 

लैटिन : एंड्रोग्राफिस पैनिकुलाटा (Andrographis Paniculata)

गुण-

कालमेघ तिक्त (तीखी), हल्की, रूखी, गरम, कफ-पित्त शामक, जठराग्नि बढ़ाने वाली, पसीना लाने वाली, विपाक पर कटु (कड़वी), कृमिनाशक, पित्त निकालने वाली, यकृत विकार, कृमि, कुष्ठ और ज्वर आदि रोगों को नष्ट करने वाली वनस्पति है। 

परिचय-

कालमेघ ज्वरनाशक औषधि के रूप में जानी जाने वाली वनस्पति है। लेकिन यह कुनैन की तरह प्रभावशाली नहीं है। यह एक प्रकार की क्षुप जाति की क्षुद्र वनस्पति होती है जिसका पौधा 1 से 3 फीट तक ऊंचा होता है। इसका डण्ठल चतुष्कोण, नीचे चिकना और ऊपर रोमश होता है। यूँ तो इसका उत्पत्ति स्थान पूरा भारत है फिर भी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल में अधिक पैदा होती है।

मात्रा सेवन विधि-

इसकी जड़ का चूर्ण दो से चार रत्ती और इसके पत्तों का रस 10 से 20 बूँद पानी में डालकर सुबह-शाम लेना चाहिए। 

उपयोग-

कालमेघ बच्चों के लिए विशेष उपयोगी है। इस वनस्पति का उपयोग अतिसार, साधारण ज्वर, सिर दर्द, अजीर्ण आदि रोगों की चिकित्सा में किया जाता है बंगाल में इस औषधि को 'अलुई' कहते हैं और इसे घरेलू इलाज के रूप में उपयोग हेतु प्रमुख औषधि माना जाता है।

कल्पनाथ वटी-

छोटी इलायची के दाने, लौंग, दालचीनी, जायफल, जावित्री और आम की गुठली सब 10-10 ग्राम लेकर कूट पीसकर चूर्ण बनाकर मिला लें और कपड़े में छान कर लें ताकि सभी द्रव्य एक जान हो जाए। 

कालमेघ के पत्तों के रस में इस चूर्ण को डालकर छः घण्टे तक घुटाई करके गोलियां बना लें। एक-एक गोली दिन में तीन बार बच्चे को देने से उदर पीड़ा, अनियमित दस्त लगना, अग्निमांद्य और बुखार आदि रोग ठीक होते है.


 

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