कर्दम ऋषि बोले, "हे प्रभो! आपके दर्शन हो जाने के परिणामस्वरूप मुझे मोक्ष की प्राप्ति तो होगी ही। मोक्ष प्राप्ति के साथ ही मुझे भोग प्राप्ति की भी इच्छा है। कृपा करके आप मेरी इस कामना को पूर्ण करें।"
भगवान विष्णु ने कहा, "हे कर्दम! तुम्हारी यह इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। समय आने पर मनु तथा शतरूपा की पुत्री देवहूति, जो कि यौवन, शील एवं गुणों में अद्वितीय है, के साथ तुम्हारा विवाह होगा और तुम अपनी इच्छानुसार गृहस्थ जीवन का आनन्द भोगोगे। देवहूति के गर्भ से नौ कन्याएँ जन्म लेंगी जो कि मारीचि आदि ऋषियों के साथ विवाह करके पुत्र उत्पन्न करेंगी। कुछ काल बाद मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रूप में अवतरित होकर सांख्य शास्त्र का उपदेश करूँगा।"
इतना कहकर भगवान अंतर्धान हो गये।
कर्दम ऋषि सरस्वती नदी के तट पर अपने आश्रम में निवास करते हुए काल की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ काल पश्चात मनु अपनी पत्नी शतरूपा और पुत्री देवहूति के साथ विचरण करते हुए कर्दम ऋषि के आश्रम पहुँचे। कर्दम ऋषि के तप से देदीप्यमान शरीर तथा सौन्दर्य को देखकर मनु अत्यन्त प्रसन्न हुए और कर्दम ऋषि के साथ अपनी कन्या देवहूति के पाणिग्रहण का प्रस्ताव किया जिसे कर्दम ऋषि ने प्रसन्नता के साथ स्वीकार कर लिया। .........इस प्रकार से कर्दम ऋषि का विवाह देवहूति के साथ हो गया।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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