"श्रेष्ठ हो, वह किया जाए।" यह एक सार्वभौमिक सत्य है, जिससे हमें अपने कर्मों के परिणामों को सहेजने की आवश्यकता है। पृथ्वी पर हर आदमी को एक दिन अपनी मौत का सामना करना है, लेकिन उसका आत्मा उच्चतम लोकों की दिशा में बढ़ता है, जहां शांति और प्रेम है।
ईश्वर के न्याय की बात करें, बुरी आत्माएं अपनी सफलता में आने पर भी कष्ट भोगती हैं, और उन्हें निम्नतम लोक में रहकर अत्यधिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। इससे दिखता है कि उच्चतम स्तरों की दिशा में बढ़ना हमारी आत्मा के लिए श्रेष्ठ है।
सजा और पुनर्जन्म: कर्मों का सत्याग्रह
बुरी आत्माओं के लिए सजा भोगने का एक रास्ता यह है कि वे बोझ ढोने वाले पशु के रूप में जन्म लेती हैं। इस रूप में, वे अपने पिछले जन्मों के पापों का सामना करती हैं और उन पर पश्चाताप करती हैं। इससे वे उच्चतम लोकों की दिशा में बढ़ती हैं, जहां सच्ची खुशी है।
भली आत्माएं: कर्मों का फल
भली आत्माएं कभी पाप नहीं करना चाहतीं क्योंकि उन्हें बुरी आत्माओं की जगह पर नहीं रहना है। इन्हें बुरे कर्मों के परिणामों से बचने का दृढ इरादा होता है और यही कारण है कि इन्हें उच्चतम स्तरों की प्राप्ति होती है।
कर्म और आत्मिक उन्नति: सत्य की ओर प्रगति
कर्म-फल का निष्कर्ष यह है कि हमारे कार्यों की सबसे बड़ी ओर महत्वपूर्ण सीख यह है कि विकृत कर्मों का परिणाम अच्छा नहीं होता। यह हमें आत्मिक सुधार की दिशा में प्रेरित करता है और सच्चे रूप से उच्चतम स्तरों की प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करता है।
सात्त्विक कर्म और सत्याग्रह: उच्चतम स्तर की दिशा
सात्त्विक कर्म, निःस्वार्थ भाव से किए गए कर्म, जीवात्मा को उच्चतम स्तरों की प्राप्ति की दिशा में प्रेरित करता है। यह कर्म हमें आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है और सत्याग्रह के माध्यम से हमें शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देता है।
लेखक बुक “अद्भुत जीवन की ओर”
भागीरथ एच पुरोहित
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