Published By:दिनेश मालवीय

करवा चौथ विशेष: स्त्री के पवित्रतम भाव की अभिव्यक्ति,  चंद्रमा की पूजा क्यों, कुछ पुरुष भी रखने लगे हैं उपवास..  दिनेश मालवीय

करवा चौथ विशेष: स्त्री के पवित्रतम भाव की अभिव्यक्ति,  चंद्रमा की पूजा क्यों, कुछ पुरुष भी रखने लगे हैं उपवास..  दिनेश मालवीय

 

संसार के हर धर्म की स्त्रियाँ अपने पति के लम्बे, स्वस्थ और सुखी जीवन की कामना करती हैं. उसके लिए वे प्रार्थनाएं करती हैं. सनातन हिन्दू धर्म में विवाहित स्त्रियाँ अपने पति तथा संतानों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए अनेक व्रत-अनुष्ठान करती हैं. इनमे हरयाली तीज, कजरी तीज, हरतालिका तीज, वटसावित्री के साथ ही करवा चौथ बहुत प्रमुख है. विवाहित स्त्रियाँ अपने पति के लिए बहुत कठिन व्रत करती हैं. यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन किया जाता है. इस दिन स्त्रियाँ कठोर व्रत रखती हैं. वे  शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद पति की आरती उतार कर उसीके हाथों से जल ग्रहण कर अपने व्रत का समापन करती हैं. यह स्त्री मन का पवित्रतम भाव है. यह पति के प्रति उसके प्रेम, समर्पण और निष्ठा की अभिव्यक्ति है.

 

पौराणिक कथा

 

हमारे देश में जीवन के महत्वपूर्ण संदेश कथाओं के माध्यम से दिए गये हैं. करवा चौथ के सम्बन्ध में भी कथा प्रचलित है. इसके अनुसार,  करवा चौथ की कथा के अनुसार एक बहन ससुराल से मायके आयी हुई थी. एक साहूकार के सात बेटों के अलावा करवा नाम की एक बेटी थी. एक बार साहूकार की बेटी को मायके में व्रत करना पड़ा. रात में जब करवा के सभी भाई खाना खा रह थे, तब भाइयों ने बहन से भी खाना खाने को कहा.लेकिन करवा ने यह कहकर खाना कहने से यह कहकर मना क्र दिया, कि अभी चाँद नहीं निकला है. मैं चाँद देखने और पूजा के बाद ही खाना खाऊँगी. उसका सबसे छोटा भाई एक पीपल के पेड़ में दीपक जलाकर चढ़ गया. उसने भाइयों से कहा, कि चाँद निकल आया है. भाइयों की चालाकी को करवा समझ नहीं पायी और उसने भोजन कर लिया. इसके बाद तुरंत उसके पति की मौत की खबर आई. पति के शव के साथ वह साल भर तक बतिथी रही और उस पर उगने वाली घास को जमा करती रही. अगले साल करवा ने फिर से विधि-विधान से व्रत किया, जिसके बाद उसका पति जीवित हो गया. इसलिए इसे करवा चौथ कहा जाने लगा. यह व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाता है. चाँद को देखने और अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलने का विधान है. चंद्रोदय से पहले भगवान् गणेश, शिवजी और माता पार्वती की पूजा के बाद स्त्रियाँ छलनी में दीपक रखकर पति का मुख देखती हैं. वे पति के हाथों से जल पीकर व्रत खोलती हैं.

 

चंद्रमा की पूजा क्यों ?

 

हिन्दू धर्म में चंद्रमा का बहुत महत्त्व है. चंद्रमा को भगवान् का मन कहा जाता है. उसे जल तत्व का देवता कहा जाता है. भगवान् शिव अर्धचन्द्र को अपने भाल पर धारण करते हैं.  चंद्रमा का दिन सोमवार है.  यह सोलह कलाओं से युक्त हैं. इन्हें अन्नमय,मनोमय, अमृतमय पुरुष स्वरूप भगवान माना जाता है. वह सभी बीजों, औषधियों, जल के राजा हैं. वह अनादि और अजेय हैं. ज्योतिष में पृथ्वी के निकट होने के कारण चंद्रमा को नवग्रहों में शामिल किया गया है, क्योंकि दूसरे ग्रहों की तरह इसका प्रभाव भी मनुष्यों पर पड़ता है. चंद्रमा सभी वनस्पतियों और औषधियों का पोषक है. स्वास्थ्य, सौदर्य, सामान और पारिवारिक सुख-शांति के लिए चंद्रदेव की उपासना की जाती है. करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि शास्त्रों में चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना गया है. ऐसी मान्यता है, कि चंद्रमा की पूजा से दाम्पत्य जीवन सुख से गुजरता है और पति की आयु लम्बी होती है.  

 

हिन्दी फिल्मों का योगदान

 

बीते कुछ दशकों में समाज में जिस तेजी से बदलाव हैं, उनसे यह त्यौहार भी अछूता नहीं रहा है. पहले यह त्यौहार बिल्कुल निजी और परवारिक हुआ करता था. हिन्दी फिल्मों ने इस परम पवित्र त्यौहार के साथ इतना अधिक ग्लेमर जोड़ दिया, कि अब यह एक बहुत कुछ बाजारवाद का शिकार हो गया है. इसके अलावा आधुनिकता की हवा में बहुत-सी ऐसी बातें होने लगी हैं, जिनकी पहले कल्पना तक नहीं की जा सकती थी. अनेक आधुनिक स्त्रियाँ इस व्रत को पुरुषों की दासता का प्रतीक मानकर कहती हैं, कि पति की लम्बी आयु के लिए सिर्फ पत्नी ही क्यों व्रत रखे? क्या पुरुष को भी पत्नी की दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए व्रत नहीं रखना चाहिए. आजकल तो एक और चलन हो गया है, कि अनेक स्त्रियाँ चूड़ी, बिंदी, माँग भरने जैसे सुहाग के प्रतीक चिन्हों को धारण करना पुरुषों की गुलामी का प्रतीक मानकर उन्हें धारण नहीं करतीं. इस चक्कर में अनेक आधुनिक पुरुष भी करवा चौथ के दिन व्रत रखने लगे हैं. इसमें कोई बुराई नहीं है. लम्बी आयु और सुखी जीवन की कामना दोनों ओर से हो, इसमें कुछ गलत नहीं है. यह प्रवृत्ति बढ़ तो रही है, लेकिन इतनी व्यापक रूप से भी नहीं, कि एकदम क्रांति जैसी हो गयी हो. आज भी अधिकतर स्त्रियाँ अपने पति को ही सर्वस्व मानती हैं.

 

बाजारीकरण

 

स्त्रियों के इस कोमल भाव को भुनाने में बाजार भी पीछे नहीं रहा है. आजकल इसे बहुत गलेमराइज कर दिया गया है. गाँव और कस्बों में तो इसका इतना असर नहीं है, लेकिन बड़े शहरों में यह बहुत बढ़ गया है. वे अपनी शक्ति के अनुसार ब्यूटी पार्लर जाकर श्रृंगार करती हैं. नए वस्त्र और आभूषण खरीदती हैं. इसके अलावा और भी अनेक नयी बातें जुड़ गयी हैं. चलनी से पति का मुख देखने वाली बात भी पहले इतनी व्यापक नहीं थी. लेकिन आज इसका चलन बढ़ रहा है.   

 

 

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