जीवन को महान बनाना कोई कठिन बात नहीं है जीवन को ऊंचाइयों तक ले जाना है तो अपने अंतःकरण की सुनना पड़ेगा।
हम इस दुनिया में क्यों आए हैं, हमारा उद्देश्य क्या है, प्रकृति हमारे कष्टों के द्वारा हमें क्या सिखाना चाहती है यही जानना पर्याप्त है। कोई भी तकलीफ हमें कुछ ना कुछ सबक सिखाने के लिए होती है। प्रारब्ध के कर्म भोग के साथ प्रकृति उस कष्ट दुख पीड़ा के साथ हमें कोई सबक देना चाहती है कोई पाठ पढ़ाना चाहती है यही जीवन का सार है।
अमृतवाणी से तात्पर्य स्वयं परमात्मा के श्रीमुख से निकले उपदेश और आदेश हैं, जिन्हें सुनकर मनुष्य अमर तत्व के पद को प्राप्त करता है. जीवन में सुख-शांति का अनुभव करता है. शास्त्रों और ऋषि-मुनियों के वचनों को बार-बार श्रवण करने से मनुष्य के हृदय में ज्ञान का नया स्रोत फूट पड़ता है,
कर्मकांड की क्रिया परमात्मा के नाम में मन लगाने के लिए की जाती है, लेकिन एक बार भक्ति मार्ग में रम जाने के बाद फिर किसी कर्मकांड की आवश्यकता नहीं रह जाती. सिर्फ मानसिक यज्ञ करना चाहिए. इससे साधक धीरे-धीरे अपनी अंतरात्मा में प्रवेश करने लग जाता है.
● इंद्रियों का दमन करो, विषयों से मुख मोड़ो-ऐसा कहने-सुनने में तो ठीक लगता है, लेकिन ऐसा सुनना श्मशान के वैराग्य की तरह है, जो क्षणिक होता है. हमें ऐसा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जो शाश्वत हो, स्थायी हो. साधक का जो अनुराग है, उसे परमात्मा की ओर मोड़ देना चाहिए तभी वह भवसागर से पार हो सकता है.
● यों तो साधारणतया संसार की विषय वासनाओं से मन छूटता नहीं, लेकिन सत्संग करने से मन परमात्मा की ओर उन्मुख होने लगता है. जिसको मान-अपमान का ध्यान रहता है उसे संसार से वैराग्य कभी हो ही नहीं सकता.
संसार के वस्तुओं के प्रति आसक्ति, इच्छाएं मनुष्य को अंधा बना देती हैं. संसार में कितना भी धन कमा लो, फिर भी आनंद या सुख मिलने की कोई गारंटी नहीं, वहीं दूसरी ओर भगवान डंके की चोट पर कहते हैं- मेरी शरण में आ जाओ, तेरे मोक्ष की गारंटी मैं लेता हूं.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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