 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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धर्म शास्त्र और विवाह नियम ..!
1. विवाह में अशौच आदि की संभावना हो तो 10 दिनो पहले नान्दी मुख श्राद्ध करना चाहिये नान्दी मुख श्राद्ध के बाद विवाह सम्पन्न अशौच होने पर भी वर-वघु को और करना चाहिये। नान्दी मुख श्राद्ध के बाद विवाह समाप्ति अशौच होने पर वर-वधू को और उनके माता-पिता को आशौच नहीं होता।
2. “कूष्माण्ड सूक्त” के अनुसार नान्दी श्राद्ध के पहले भी विवाह के लिए सामग्री तैयार होने पर आशौच प्राप्ति हो तो प्रायश्चित करके विवाह कार्यक्रम होता है। प्रायश्चित के लिए हवन, गोदान और पंचगव्य प्राशन करें।
3. विवाह के समय हवन में पू्र्व अथवा मध्य में या अंत में कन्या यदि रजस्वला हो जाने पर कन्या को स्नान करा कर “युञ्जान“इस मंत्र से हवन करके अवशिष्ट कर्म करना चाहिये
4. वधु या वर के माता को रजोदर्शन की संभावना हो तो नान्दी श्राद्ध दस दिनो के पूर्व कर लेना चाहिये। नान्दी श्राद्ध के बाद रजोदर्शन जन्य दोष नहीं होता।
5. नान्दी श्राद्ध के पहले रजोदर्शन होने पर “श्री शांति” करके विवाह करना चाहिये।
6. वर या वधू की माता के रजस्वला अथवा संतान प्राप्ति होने पर “श्री शांति” करके विवाह हो सकता है
7. विवाह में आशौच की संभावना हो तो, अशौच के पूर्व अन्न का संकल्प कर देना चाहिये। फिर उस संकल्पित अन्न का दोनों पक्षों के मनुष्य भोजन कर सकते हैं।इसमें कोई दोष नहीं होता है। परिवेषण असगोत्र के मनुष्य को करना चाहिये।
8. विवाह में वर-वधू को “ग्रन्थिबन्धन” कन्यादान के पूर्व शास्त्र विहित है। कन्यादान के बाद नहीं। कन्यादाता को अपनी स्त्री के साथ ग्रन्थिबन्धन कन्यादान के पूर्व होना चाहिए।
9. दो कन्या का विवाह एक समय हो सकता है परन्तु एक साथ नहीं। लेकिन एक कन्या का वैवाहिक कार्य समाप्त होने पर द्वार-भेद और आचार्य भेद से भी हो सकता है।
10. एक समय में दो शुभ क्रम करना उत्तम नहीं है। उसमें भी कन्या के विवाह के अनन्तर पुत्र का विवाह हो सकता है। परन्तु पुत्र विवाह के अनन्तर पुत्री का विवाह छ: महीने तक नहीं हो सकता।
11. एक वर्ष में सहोदर (जुड़वा) भाई अथवा बहनों का विवाह शुभ नहीं है। वर्ष भेद में और संकट में कर सकते हैं।
12. समान गोत्र और समान प्रवर वाली कन्या के साथ विवाह निषिद्ध है।
13. विवाह के पश्चात एक वर्ष तक पिंडदान, मृत्तिका स्नान, तिलतर्पण, तीर्थ यात्रा,मुण्डन, प्रेत अनुगमन आदि नहीं करना चाहिये।
14. विवाह में छींक का दोष नहीं होता है।
15. वैवाहिक कार्यक्रम में स्पर्श स्पर्श का दोष नहीं होता।
16. वैवाहिक कार्यक्रम में चतुर्थ, द्वादश, चन्द्रमा ग्राह्य है।
17. विवाह में छठ, अष्टमी, दशमी तथा शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा रिक्ता आदि तिथि निषिद्ध है ।
18. विवाह के दिन या पहले दिन अपने-अपने घरों में कन्या के पिता और वर के पिता को स्त्री,कन्या-पुत्र सहित मंगल स्नान करना चाहिए। और शुद्ध नवीन वस्त्र -तिलक-आभूषण आदि से विभूषित होकर गणेश मातृका पूजन (नान्दी श्राद्ध) करना चाहिये।
19. श्रेष्ठ दिन में सौलह या बारह या दस या आठ हाथ के परिमाण का मंडप चारों द्वार सहित बनाकर उसमें एक हाथ की चौकोर हवन-वेदी पूर्व को नीची करती हुई बनावें उसे हल्दी, गुलाल, गोधूम तथा चूने आदि से सुशोभित करें। हवन-वेदी के चारों ओर काठ की चार खूंटी निम्न प्रकार से रोपे, उन्हीं के बाहर सूत लपेटे कन्या, सिंह और तुला राशियां संक्रांति में तो ईशान कोण में प्रथम वृश्चिक, धनु, और मकर ये राशियां संक्रांति में तो वायव्य कोण में प्रथम मीन, मेष और कुम्भ ये राशियां संक्रांति में तो नैऋत्य कोण में प्रथम। वृषभ, मिथुन और कर्क ये राशियां संक्रांति में तो अग्नि कोण में प्रथम।एक काठ में पाटे के ऊपर गणेश, षोडश मातृका, नवग्रह आदि स्थापना करें। ईशान कोण में कलश स्थापना करें।
20. कन्या पिता / अभिभावक स्नान करके शुद्ध नवीन वस्त्र पहन कर उत्तराभिमुख होकर आसन पर बैठे तथा वर पूर्वाभिमुख बैठें।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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