Published By:धर्म पुराण डेस्क

जानिए यूनानी सभ्यता और हिन्दू (सनातन)धर्म |Dharma Puran

 यूनानी देवी और देवताओं में बहुत हद तक समानताएं हैं। उनका संबंध सितारों से है, उसी तरह जिस तरह की हिन्दू (सनातन)देवी-देवताओं का है।

ग्रीस देश के महाकवि होमर ने ईसा की 8वीं शताब्दी में ‘ओडिसी’ नामक महाकाव्य लिखा था जिसमें उसने अपने समय की देश स्थिति का वर्णन किया है। इस ग्रंथ से पता चलता है कि आयुर्वेद की ‘दैव व्यपाश्रय’ पद्धति वहां प्रचलित थी। उसकी दूसरी पुस्तक ‘इलियाड’ में भारतीय शल्य चिकित्सा के उपयोग का भी वर्णन है।

डॉ. रॉयल अपनी पुस्तक ‘सिविलाइजेशन इन इंडिया’ में लिखते हैं कि ‘विश्व की प्रथम चिकित्सा प्रणाली के लिए हम हिन्दुओं (सनातनियों)के ऋणी हैं।’ ग्रीस की वैद्यकीय चिकित्सा पर भारतीय आयुर्वेद का प्रभाव प्रत्यक्षतः तथा परोक्षतः (मिस्र, ईरान आदि के माध्यमों से) पड़ा था।

डोरोथिया चैपलिन लिखते हैं- ‘भारतीय आयुर्वेद के शरीर विज्ञान में कोई भी विदेशी शब्द नहीं है जबकि पाश्चात्य शरीर विज्ञान पर भारत की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।’

सर में मस्तिष्क के ऊपर के भाग को आयुर्वेद में शिरोब्रह्म कहते हैं, वह ग्रीस और रोम में ‘सेरेब्रम’ हो गया है। वैसे ही मस्तिष्क के पीछे का भाग शिरोविलोम ‘सेरिबैलम’ और हृद ‘हार्ट’ हो गए हैं। घोड़ों पर सवार होकर रोगियों की चिकित्सा करने वाले भारतीय अश्विनीकुमारों के युग्म जैसे ‘कैक्टस और पोलुपस’ ग्रीक युग्म घोड़ों पर सवार होकर रोगियों की रक्षा करते हैं।

प्रसिद्ध इतिहासकार मोनियर विलियम्स ने स्पष्ट बताया है कि यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पायथागोरस दोनों दर्शनशास्त्र के विषय में सब तरह से भारतवासियों के ऋणी हैं। पाइथागोरस के नाम से प्रसिद्ध प्रमेय भारत के बौधायन शुल्ब सूत्र में बहुत पहले से ही विद्यमान है।

 

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