मित्रों जब भी हमें कोई अटेंशन मिलता है, आवभगत मिलती है, लोगों का सत्कार मिलता है तो हमें लगता है यह हमारे ख़ास गुणों के कारण है। हर व्यक्ति को आकर्षण का केंद्र बनना है|
हम लोग चाहते हैं कि लोग हमें पूछें हमें दूसरों से ज्यादा महत्व दे, लेकिन हम यह नहीं जानते कि यह चाहत हमारे अहंकार के कारण होती है।
हम अहंकार के कारण ही दूसरों से ज्यादा तवज्जो चाहते हैं। और जब हमें दूसरों से ज्यादा अटेंशन मिलती है तो यकीन मानिए यह अटेंशन हमारे अहंकार के कारण ही मिलती है हमारे अहंकार के कारण हमारे हाव-भाव बदल जाते हैं और दूसरे लोग हमें विशेष मान कर पूछ परख करते हैं।
ओशो टाइम्स में एक कथा आती है।
प्रसिद्ध चीनी विचारक लाओत्से के अनुयायी यांग ने अपने अनुभवों में एक जगह लिखा है कि गुरु से सीख लेने के बाद उसके समूचे व्यक्तित्व में कैसे बदलाव आया.
लाओत्से से मिलने के लिए वह अपने गांव से निकला. उसके गांव से लाओत्से का गांव बहुत दूर था. वहां तक पहुंचते-पहुंचते उसे कई गांवों से होकर गुजरना पड़ा. इन गांवों में वह सरायों में ठहरा. जहां-जहां वह गया, हर जगह लोगों ने उसका बाकी सब लोगों से ज्यादा ख्याल रखा. वह कहीं खाना खाने जाता तो खाना परोसने वाला सबसे पहले उसकी जरूरतों का ख्याल रखता.
सराय का मालिक उससे आ-आकर पूछता कि उसे किसी बात की कमी तो नहीं है. ढाबे के मालिक की पत्नी उसके हाथ धोने के लिए गरम पानी लेकर आती. इस सबसे उसे बहुत खुशी मिलती.
आखिर, वह लाओत्से के गांव जाकर उससे मिला. लाओत्से के साथ एक साल वह रहा. लाओत्से ने उसे अपने गांव लौटने के लिए कहा तो वह अपने गांव की ओर निकल पड़ा. लौटते वक्त भी उसे उन्हीं सरायों एवं ढाबों से होकर गुजरना पड़ा. लेकिन, इस बार उनमें से किसी ने भी उसकी जरूरतों का खास ख्याल नहीं रखा.
बाकी ग्राहकों की तरह ही उसे सम्मान मिला और उसकी जरूरतों का ख्याल रखा गया. इस बारे में उसने काफी सोचा. तब उसे लगा कि शायद गुरु से मिलने जाते समय उसका अहं इतना मुखर था कि उसकी तरफ हर किसी को मजबूरन ध्यान देना पड़ता था.
यह उसके अहं और आकर्षण की बात थी. लेकिन, गुरु से मिल कर लौटते समय उसका अहं शांत एवं विनम्र हो चुका था. इसलिए, उसके व्यक्तित्व की तरफ किसी का ध्यान आकर्षित नहीं हुआ था. अपनी इस उपलब्धि पर वह संतुष्ट था.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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