Published By:धर्म पुराण डेस्क

जानें, प्रार्थना करना भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है

हर कार्य के पहले भगवान या सद्‌गुरुदेव की प्रार्थना करना भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है। इससे हमारे कार्य में ईश्वरीय सहायता, प्रसन्नता और सफलता जुड़ जाती है।

प्रार्थना-

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। 

गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

'गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है। गुरुदेव ही शिव है तथा गुरुदेव ही साक्षात् साकार स्वरूप आदिब्रह्म हैं। मैं उन्हीं गुरुदेव को नमस्कार करता हूँ।'

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्। 

मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।

'ध्यान का आधार गुरु की मूर्ति है, पूजा का आधार गुरु के श्रीचरण हैं, मंत्र का आधार गुरुदेव के श्रीमुख से निकले हुए वचन हैं तथा गुरु की कृपा ही मोक्ष का द्वार है।'

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। 

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

'जो सारे ब्रह्मांड में, जड़ और चेतन सब में व्याप्त हैं तथा जिनके द्वारा वह (परमात्मा) पद दर्शाया जाता है, उन श्री गुरुदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।'

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। 

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।

'तुम ही माता, तुम ही पिता हो। तुम ही बंधु, तुम ही सखा हो। तुम ही विद्या और तुम ही धन हो। हे देवताओं के देव ! सद्गुरुदेव ! मेरा सब कुछ तुम ही हो।'

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्ति द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्‌गुरुं तं नमामि।।

'जो ब्रह्मानंदस्वरूप है, परम सुख देने वाले हैं, केवल ज्ञानस्वरूप हैं, (सुख-दुःख, शीत-उष्ण आदि) द्वंद्वों से रहित हैं, आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं, 'तत्त्वमसि' आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं, एक हैं, नित्य हैं, मलरहित हैं, अचल हैं, सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं, भावना से परे हैं, सत्व, रज और तम तीनों गुणों से रहित हैं - ऐसे श्री सदगुरुदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।'

प्रार्थना: भगवान की आराधना

प्रार्थना हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भाग है जो हमें ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करता है और हमें ऊँचाइयों की ओर बढ़ने में मदद करता है। इसके माध्यम से हम ईश्वर से अपनी मनोबल, सफलता, और आत्मनिर्भरता की मांग करते हैं।

गुरु शिक्षा का प्रतीक:

प्रार्थना में गुरु का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे हम ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर से सम्बोधित करते हैं। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के साकार स्वरूप के रूप में पूजना हमें आदि दैविक शक्ति की उपस्थिति का आभास कराता है और हमें उनकी शिक्षा के प्रति कृतज्ञता का अर्थ दिलाता है।

ध्यान, पूजा, और प्रार्थना:

ध्यान, पूजा, और प्रार्थना का संबंध गहरा है। प्रार्थना मानव चित्त को ईश्वर के प्रति समर्पित करने का एक उपयुक्त तरीका है। इसके माध्यम से हम अपनी आत्मा को दिव्य सत्ता से जोड़ते हैं और ईश्वर की अद्वितीयता में समाहित होते हैं।

अनंत गुणों की प्रशंसा:

प्रार्थना में भगवान की अनंत गुणों की प्रशंसा होती है, जो हमें उनकी अद्वितीय और सर्वशक्तिमान स्वरूप में ले जाती है। यह हमें भक्ति और श्रद्धा में संगत होने का अनुभव कराती है और हमें सभी जीवन के क्षेत्रों में सहायता प्रदान करती है।

संबंध बनाए रखना:

प्रार्थना से हम अपने संबंधों को मजबूत रख सकते हैं। इसके माध्यम से हम ईश्वर के साथ निजी संबंधों को मजबूत करने का प्रयास करते हैं और अपने आत्म विकास के पथ पर बढ़ते हैं।

समाप्ति:

प्रार्थना हमें एक ऊँची और नीची स्थिति में हमेशा एकसा बनाए रखने का अद्वितीय तरीका प्रदान करती है। इससे हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है और हम सच्चे धार्मिकता की दिशा में अग्रसर होते हैं।

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