कार्तिकेय तुरन्त अपने वाहन मयूर पर निकल गये पृथ्वी की परिक्रमा करने। गणपति जी चुपके से एकांत में चले गये। थोड़ी देर शांत होकर उपाय खोजा तो झट से उन्हें उपाय मिल गया। जो ध्यान करते हैं, शांत बैठते हैं उन्हें अंतर्यामी परमात्मा सत्प्रेरणा देते हैं। अतः किसी कठिनाई के समय घबराना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का ध्यान करके थोड़ी देर शांत बैठो तो आपको जल्द ही उस समस्या का समाधान मिल जायेगा।
फिर गणपति जी आये शिव-पार्वती जी के पास। माता-पिता का हाथ पकड़ कर दोनों को ऊँचे आसन पर बिठाया, पत्र-पुष्प से उनके श्री चरणों की पूजा की और प्रदक्षिणा करने लगे। एक चक्कर पूरा हुआ तो प्रणाम किया|
दूसरा चक्कर लगाकर प्रणाम किया...इस प्रकार माता-पिता की सात प्रदक्षिणा कर ली। शिव-पार्वती ने पूछा- वत्स! ये प्रदक्षिणाएँ क्यों की?
गणपति जीः सर्वतीर्थमयी माता... सर्वदेवमयो पिता... सारी पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य होता है, वही पुण्य माता की प्रदक्षिणा करने से हो जाता है, यह शास्त्रवचन है। पिता का पूजन करने से सब देवताओं का पूजन हो जाता है। पिता देवस्वरूप हैं। अतः आपकी परिक्रमा करके मैंने संपूर्ण पृथ्वी की सात परिक्रमा कर लीं हैं। तब से गणपति जी प्रथम पूज्य हो गये।
शिव-पुराण में कहा गया है-
माता पित्रोश्च पूजनं, कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः।
तस्य वै पृथिवीजन्यफलं, भवति निश्चितम्।।
"जो पुत्र माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे पृथ्वी-परिक्रमा जनित फल सुलभ हो जाता है।"
"प्रेम दिवस" जरूर मनाएं, लेकिन प्रेम दिवस में संयम और सच्चा विकास लाना चाहिए।" वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन मनाना चाहिए। बता दें कि साल 2006 से वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू किया गया था जो आज करोड़ों लोगों द्वारा मनाया जा रहा है।
माता-पिता के पूजन की विधिः
माता-पिता को स्वच्छ तथा ऊँचे आसन पर बिठायें।
आसने स्थापिते ह्यत्र पूजार्थं भवरोरिह।
भवन्तौ संस्थितौ तातौ पूर्यतां मे मनोरथः।।
अर्थात् ʹहे मेरे माता पिता ! आपके पूजन के लिए यह आसन मैंने स्थापित किया है। इसे आप ग्रहण करें और मेरा मनोरथ पूर्ण करें।ʹ
बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता के माथे पर कुंकुम का तिलक करें। तत्पश्चात् माता-पिता के सिर पर पुष्प एवं अक्षत रखें तथा फूल माला पहनाएं। अब माता-पिता की सात परिक्रमा करें। इससे उन्हें पृथ्वी परिक्रमा का फल प्राप्त होता है।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता को झुक कर विधिवत प्रणाम करें।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
अर्थात जो माता पिता और गुरुजनों को प्रणाम करता है और उनकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं।
आरती- बच्चे-बच्चियाँ थाली में दीपक जलाकर माता-पिता की आरती करें और अपने माता-पिता एवं गुरु में ईश्वरीय भाव जगाते हुए उनकी सेवा करने का दृढ़ संकल्प करें।
दीपज्योतिः परं ब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोઽस्तु ते।।
आरती की तर्ज:-
ૐ जय जगदीश हरे...
ૐ जय जय मात-पिता, प्रभु गुरु जी मात-पिता।
सद्भाव देख तुम्हारा,मस्तक झुक जाता।। ૐ जय जय मात-पिता...
कितने कष्ट उठाये हमको जनम दिया, मइया पाला-बड़ा किया।
सुख देती, दुःख सहती, पालनहारी माँ।। ૐ जय जय मात-पिता...
अनुशासित कर आपने उन्नत हमें किया, पिता आपने जो है दिया।
कैसे ऋण चुकाऊँ, कुछ न समझ आता।। ૐ जय जय मात-पिता...
सर्वतीर्थमयी माता सर्व देवमय पिता, ૐ सर्वदेवमय पिता।
जो कोई इनको पूजे, पूजित हो जाता।। ૐ जय जय मात-पिता...
मात-पिता की पूजा गणेशजी ने की, श्रीगणेशजी ने की।
सर्वप्रथम गणपति को, ही पूजा जाता।। ૐ जय जय मात-पिता...
बलिहारी सदगुरु की मारग दिखा दिया, सच्चा मारग दिखा दिया।
मातृ-पितृ पूजन कर, जग जय जय गाता।। ૐ जय जय मात-पिता...
मात-पिता प्रभु गुरु की आरती जो गाता है प्रेम सहित गाता।
वो संयमी हो जाता, सदाचारी हो जाता, भव से तर जाता।। ૐ जय जय मात-पिता...
लफंगे-लफंगियों की नकल छोड़, गुरु सा संयमी होता, गणेश सा संयमी होता।
स्वयं आत्मसुख पाता, औरों को भी पवाता।। ૐ जय जय मात-पिता...
इस समय माता-पिता अपने बच्चों के सिर पर हाथ रखकर स्नेहमय आशीष बरसायें एवं उनके मंगलमय जीवन के लिए इस प्रकार शुभ संकल्प करें- "तुम्हारे जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति व पराक्रम की वृद्धि हो। तुम्हारा जीवन माता-पिता एवं गुरु की भक्ति से महक उठे। तुम्हारे कर्मों में धर्म, सज्जनता और कुशलता आये।
तुम त्रिलोचन बनो, तुम्हारी बाहर की आँख के साथ भीतरी, विवेक की कल्याणकारी आँख जागृत हो। तुम पुरुषार्थी बनो और हर क्षेत्र में सफलता तुम्हारे चरण चूमे।"
आयुष्मान भव– ʹतुम दीर्घायु बनोʹ। श्रद्धावान भव– ʹतुम श्रद्धावान बनो।ʹ विद्यावान भव- ʹतुम विद्यावान बनो।ʹ ब्रह्मविद् भव- ʹतुम ब्रह्मवेत्ता बनो।ʹ
यही है असली प्रेम दिवस! इस दिन बच्चे-बच्चियाँ पवित्र संकल्प करें कि ʹमैं अपने माता-पिता व गुरुजनों का आदर करूँगा/करूँगी। उन्हें रोज प्रणाम करूँगा/करूँगी। मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जाने वाली उनकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्तव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा/करूँगी।
बच्चे बच्चियाँ माता-पिता को मधुर प्रसाद खिलाएं एवं माता-पिता अपने बच्चों को प्रसाद खिलाएं।
शास्त्र-वचनामृत:-
यन्मातापितरौ वृत्तं तनये कुरुतः सदा।
न सुप्रतिकरं तत्तु मात्रा पित्रा च यत्कृतम्।।
'माता और पिता पुत्र के प्रति जो सर्वदा स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हैं, उपकार करते हैं, उसका प्रत्युपकार सहज ही नहीं चुकाया जा सकता है।'
माता गुरुतरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा।
'माता का गौरव पृथ्वी से भी अधिक है और पिता आकाश से भी ऊँचे (श्रेष्ठ) हैं।'
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
'जो माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम करता है और उनकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं।'
मातापित्रोस्तु यः पादौ नित्यं प्रक्षालयेत् सुतः।
तस्य भागीरथीस्नानं अहन्यहनि जायते।।
'जो पुत्र प्रतिदिन माता और पिता के चरण पखारता है, उसका नित्यप्रति गंगा-स्नान हो जाता है।'
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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