भैरव का अर्थ और महत्व: भैरव का शाब्दिक अर्थ होता है "भय का हरण करने वाला"। यह दिखाता है कि भैरव शक्तिशाली हैं और भक्तों को संकटों से बचा सकते हैं। भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति समाहित होती है। यह दिखाता है कि वे त्रिमूर्ति की शक्ति संग्रह करते हैं। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुयायी माने जाते हैं।
भैरव की उत्पत्ति: पुराणों में कहा जाता है कि भैरव की उत्पत्ति शिव के रुधिर से हुई। उस रुधिर से दो भाग हुए - पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। दोनों भैरवों की पूजा का प्रचलन है, और वे अलग-अलग रूपों में पूजे जाते हैं। भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नामों से भी जाना जाता है। भैरव को भगवान शिव के पांचवें अवतार के रूप में भी माना जाता है।
भैरव की पूजा: भैरव की पूजा भारतीय देवताओं में महत्वपूर्ण है। उन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है कि वे काशी के सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं। उन्हें भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से भी पुकारा जाता है। उनकी पूजा विभिन्न समाजों में भिन्न-भिन्न रीति-रिवाजों के साथ की जाती है, जो स्थानीय परंपरा का हिस्सा होता है।
भैरव मंदिर: भैरव के प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में स्थित हैं। उज्जैन में काल भैरव का मंदिर है और लखनऊ में बटुक भैरव का मंदिर है। भैरव मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुक भैरव मंदिर भी प्रसिद्ध है। भारत में भैरव के शक्तिपीठों और उपपीठों के पास भी बहुत सारे मंदिर हैं जिनका महत्व मान्य है।
काल भैरव: काल भैरव भगवान का एक रूप है और वह शिव का साहसिक युवा रूप माना जाता है। उनका आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। काल भैरव की पूजा करने से शत्रु से मुक्ति, संकटों से निजात, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय और साहस की प्राप्ति होती है। भैरव को शंकर का रूद्रावतार माना जाता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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