नाथ संप्रदाय -
नाथ संप्रदाय की शुरुआत आदिनाथ भगवान शंकर से मानी जाती है किंतु इसे व्यवस्थित रूप दिया नाथ सिद्ध मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य गोरखनाथ थे।
नाथ सम्प्रदाय के आदि प्रवर्तक चार महायोगी हुए हैं। आदिनाथ स्वयं शिव है और उनके दो शिष्य थे जालंधरनाथ और मत्स्येन्द्र नाथ जालघर नाथ के शिष्य थे कृष्णपाद (कान्हापाद, कान्हया, कानका) और मत्स्येन्द्रनाथ के गोरखनाथ इस प्रकार ये चारों नाथ सिद्ध नाथ सम्प्रदाय के मूल प्रवर्तक माने जाते हैं।
किन्तु परवर्ती नाथ दाय में मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ के ही उल्लेख मिलते हैं क्योंकि शेष दोनों सिद्धों का सम्बन्ध कापालिक साधना से था. गोरखनाथ ने तांत्रिक पद्धति की अपेक्षा तप और हठ योग को महत्व दिया। उन्होंने योग साधना के माध्यम से ईश्वर के साक्षात्कार और उसे प्राप्त करने का रास्ता सुझाया।
नाथ सम्प्रदाय योग की सभी क्रियाओं पर बल देता है किन्तु कुण्डलिनी जागरण और खेचरी मुद्रा आदि यौगिक क्रियाओं का अधिक प्रचार हुआ। सिद्धों ने तमाम बाइय आदम्बत और रूढ़ियों का विरोध करके निर्विकार निर्माण ईश्वर की उपासना को महत्व दिया।
गोरखनाथ परमसिद्ध और अमर हैं। वे जब भी चाहे साधक को दर्शन दे सकते हैं। गोरखनाथ ने योगशास्त्र विषयक अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। इनका सम्प्रदाय तप, कठोर त्याग एवं योग की कठिन साधना पर आधारित है।
वे प्रमोद 4 आलस्य योग तथा बाह्य भेदों के प्रबल विरोधी रहे। इनके अनुसार योग की एकाग्रता की ईश्वर तक पहुँचने और शक्ति प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है।
गुरु गोरखनाथ के शिष्यों में गुरु चौरंगीनाथ का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्हें पूरण भगत तथा बाबा विसाह नामो से भी जाना जाता है। इनका जन्म स्पालकोट (पाकिस्तान) के राजपूत राजा शालवाहन के घर में हुआ था।
हरियाणा के जनपद गुड़गांव के ग्राम कासन में चौरंगीनाथ ने तपस्या की। बाबा विसाह के साथ अनेक चमत्कारिक कथाएँ जुड़ी है। ग्राम कासन में ही चौरंगीनाथ को समर्पित एक भव्य मंदिर है जहाँ वर्ष में दो बार मेला लगता है।.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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