गुड़ी पड़वा का त्यौहार महाराष्ट्र के साथ-साथ देशभर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. जानिए, गुड़ी पड़वा के महत्व और इससे जुड़ी हुई विस्तृत जानकारी के बारे में…!
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र का महीना हिन्दू धर्म के लिए बेहद खास माना जाता है. चैत्र मास पहला महीना तो वहीं फाल्गुन मास हिंदी कैलेंडर के अनुसार आखिरी महीना माना जाता है.
8 मार्च से चैत्र मास प्रारंभ हो गया है, 22 मार्च 2023 से हिन्दू नववर्ष मनाया जाएगा. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ होता है, जिसे विक्रम संवत कहा जाता है. इसे गुड़ी पड़वा, वर्ष प्रतिपदा और युगादि के नाम से भी जाना जाता है।
गुड़ी पड़वा का त्यौहार महाराष्ट्र के साथ-साथ देशभर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. 'गुड़ी' का अर्थ है- विजय पताका, जबकि 'युग' और 'आदि' शब्दों से मिलकर बना है 'युगादि'. गुड़ी पड़वा को चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है.
22 मार्च 2023 से हिन्दू विक्रम संवत 2080 प्रारंभ होगा. इस दिन चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है. गुड़ी पड़वा के महत्व और इसे मनाने के बारे में विस्तृत जानकारी यहाँ दी गई है.
गुड़ी पड़वा क्या है?
गुड़ी पड़वा के दिन विक्रम संवत 2080 की शुरुआत होगी, लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर में वर्ष 2023 चल रहा है. महाराष्ट्र में मराठी समुदाय के लोग गुड़ी पड़वा बड़ी धूमधाम से मनाते हैं.
यह पर्व देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. इस गुड़ी पड़वा को चैत्र प्रतिपदा, वर्ष प्रतिपदा और युगादि के नाम से भी जाना जाता है. इस त्योहार के दिन घर को खास तौर से सजाया जाता है. घर के दरवाजे के पास रंगोली बनाई जाती है.
गुड़ी पड़वा पर क्या होता है विशेष-
इस दिन लोग अपने घरों में गुड़ी की स्थापना करते हैं, जिसके कारण इस पर्व को गुड़ी पड़वा कहा जाता है. मराठी समुदाय के लोग एक बांस की छड़ी लेकर उस पर चांदी, तांबे या पीतल का कलश उल्टा रखते हैं. जिसमें केसरिया रंग के झंडे को नीम के पत्तों, आम के पत्तों और फूलों से सजाकर घर की सबसे ऊंची जगह पर रखा जाता है.
इस त्योहार को गोवा और केरल में संवत्सर पड़वा, कर्नाटक में युगादि, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा, कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में 'साजिबू नोंगमा पनबा', उत्तर प्रदेश और मध्य भारत में चैत्र नवरात्रि के रूप में जाना जाता है.
जानिए, गुड़ी पड़वा का महत्व-
माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी. इस गुड़ी पड़वा को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है. महान राजा छत्रपति शिवाजी की जीत के उपलक्ष्य में मराठी समुदाय के लोग घरों पर गुड़ी की स्थापना करते हैं.
इसी दिन महान ज्योतिषी और गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक के दिनों, महीनों और वर्षों की गणना करके पंचांग की रचना की थी. इस तिथि को चंद्र चरण का पहला दिन होता है.
ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान प्रभु श्री राम लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटे थे, जिसे विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है. साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस दिन घरों पर गुड़ी की स्थापना करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
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