माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी मनाई जाती है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है। बसंत पंचमी को श्रीपंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बसंत पंचमी के दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा की जाती है। मां सरस्वती ज्ञान की देवी है। गुरु शिष्य परंपरा के तहत अभिभावक इसी दिन अपने बच्चे को गुरुकुल में गुरु को सौंपते थे। यानी बच्चों की औपचारिक शिक्षा के लिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है।
पंचमी बसंत का पौराणिक महत्त्व रामायण काल से जुड़ा हुआ है। जब मां सीता को रावण हर कर लंका ले जाता है। तो भगवान श्रीराम उन्हें खोजते हुए जिन स्थानों पर गए थे, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और प्रेमवश चख चखकर मीठे बेर रामजी को खिलाने लगी।
कहते हैं कि भगवान् रामचंद्र जी शबरी मां के आश्रम में बसंत पंचमी के दिन ही पधारे थे। आज भी उस क्षेत्र के वनवासी एक शिला को पूजते हैं। वनवासी मानते हैं कि भगवान श्रीराम आकर इसी शिला बैठे थे। यहां शबरी माता का मंदिर भी है।
माता शबरी का वह आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में स्थित है। महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित यह मंदिर प्रकृति के खूबसूरत नजारों से घिरा हुआ है। इस स्थान को पहले शबरीनारायण कहा जाता था जो बाद में शिवरीनारायण के रूप में प्रचलित हुआ।
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