 Published By:धर्म पुराण डेस्क
 Published By:धर्म पुराण डेस्क
					 
					
                    
हरियाली तीज आने ही वाली है, ये एक ऐसा त्यौहार है, जिसका महिलाएं खुश होकर स्वागत करती हैं, सजती हैं, संवरती है, हरी-हरी चूड़ियां पहनती हैं।
तीज एक ऐसा पर्व जो विवाहित और अविवाहित स्त्रियों दोनों के लिए ही बेहद खास होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हरियाली तीज का ये त्यौहार सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ता है। मुख्य रूप से ये पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे विशेषकर उत्तर भारत में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।
पुरानी मान्यताओं के अनुसार तीज के दिन स्त्रियां साज-श्रृंगार करके पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं और विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। हरियाली तीज का ये त्यौहार माता पार्वती और भगवान शिव के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
इस दिन सभी स्त्रियां हाथों पर मेंहदी लगाती हैं, झूला डालती हैं और झूलती भी हैं, मीठे पकवान जैसे गुजिया, घेवर, फैनी जैसी कई मिठाईयां बनाती हैं और इन पकवानों को बेटियों के ससुराल भी भेजा जाता है। कहा जाता है कि ये व्रत करवा चौथ के व्रत से भी कठिन होता है क्योंकि महिलाएं इस दौरान बिना अन्न-जल ग्रहन किए इस व्रत को पूर्ण करती हैं। श्रावण मास में पड़ने के कारण इसे श्रावणी तीज या सावन तीज भी कहा जाता है।
व्रत विधि-
हरियाली तीज के दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। सुहागिन महिलाओं के मायके से उन्हें श्रृंगार का सामान यानी कि सिंदारा और मिठाइयां आती हैं। इस दिन महिलाएं प्रातः उठकर घर के सारे काम करके थोड़ा समय अपने लिए भी निकालती है। 16 श्रृंगार करती हैं और निर्जला व्रत करती हैं और शिव-पार्वती का आह्वान करती हैं।
पूजा के अंत में हरियाली तीज के व्रत से जुड़ी कथा को कहा और सुना जाता है। इसके उपरांत महिलाएं मां पार्वती से अपने पति परमेश्वर की दीर्घायु के लिए कामना करती हैं। आखिर में पूजा-अर्चना करने के बाद वे झूले झूलती हैं और खुशियां मनाती हैं।
व्रत कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए अन्न-जल त्यागकर घोर तपस्या की थी। इस कठिन तप के फल स्वरूप मां पार्वती ने भोलेनाथ को पति रूप में पाया था। इससे जुड़ी मुख्य कथा के अनुसार मां पार्वती ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था और बचपन से ही वे शिव शंभू को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी।
एक दिन नारद जी हिमालय के पास गए और उन्हें मां पार्वती के विवाह के लिए भगवान विष्णु जी का सुझाव देने लगे। हिमालय राज को भी यह प्रस्ताव अच्छा लगा और उन्होंने इस रिश्ते के लिए सहमति दे दी। परंतु जब ये बात देवी पार्वती को पता चली कि उनके पिता ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया तब वे अत्यंत दुखी और क्रोधित होकर क्रोधवश अपनी सखियों के साथ जंगल में चली गई।
वहां जाकर उन्होंने कठोर तप शुरू कर दिया। ये सब देख शिव शंकर बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने मां पार्वती को इस मनोकामना के पूरे होने का आशीष दिया। जिसके परिणाम स्वरूप पार्वती मां के पिता ने उनका विवाह बड़ी धूमधाम से करवाने का निर्णय लिया। तो इस तरह देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति परमेश्वर के रूप में पा लिया।
आज भी कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को करती हैं और सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को करती है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024 
                                यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024 
                                लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024 
                                संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024 
                                आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024 
                                योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024 
                                भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024 
                                कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                