 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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ज्ञान जीवन का आधार है लेकिन ज्ञान किताबों से हासिल किया जाए, संतों से हासिल किया जाए या फिर ज्ञान का स्रोत कहीं और है यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है।
बाह्य ज्ञान भी ईश्वर द्वारा प्रदत्त है और अंतःकरण से उपजा ज्ञान भी ईश्वर की ही देन है। सर्वत्र ईश्वर ही ईश्वर है वाह्य ज्ञान मनुष्य स्वयं का शोध मानता है, लेकिन बाह्य ज्ञान भी ईश्वर ही धीरे-धीरे एक प्रक्रिया के तहत मनुष्य को देता है।
मनुष्य सोचता है कि बाह्य ज्ञान भी उसने पैदा किया लेकिन वह ज्ञान पहले से ही मौजूद था उसने उस ज्ञान तक पहुंच बनाई इतना ही उनका योगदान है।
ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं-
ज्ञान के बिना जीवों की मुक्ति नहीं हो पाती, अविद्या जीव को घोर नरक की ओर ले जाती है. भवसागर से पार होने के लिए सद्गुरु से सत्संग करना आवश्यक है. हीन भावना अज्ञानता से ही उत्पन्न होती है. नित्य पूजा, जप, तप व साधना जीवन को पार लगाने की दीर्घ नौका नहीं है, उसके लिए संतों के सत्संग की अनिवार्यता बताई गई है.
यदि सनातन धर्म को किसी भी प्रकार से आंच आई तो सारा संसार नष्ट हो जायेगा. चाहे राम कहो या चाहे कृष्ण कहो लेकिन सनातन धर्म को मत आंच आने दो. सम्पूर्ण मानव जाति सनातन धर्म पर चलकर एक दूसरे को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दिखा सकता है.
गुरु के बिना इस संसार में कुछ संभव नहीं है. सत्रह तत्वों को मिलाकर स्थूल का निर्माण होता है. भगवान कहते हैं कि जीव केवल मेरा अंश है और किसी का नहीं. जल, वायु, प्रकृति, माता-पिता अगर जीव को अपना अंश मानते हैं तो यह उनका भ्रम है. हर जीव में परमात्मा का वास है, मानव यदि पंचदेवों आदि की पूजा-पाठ करता है तो वह केवल परमात्मा की ही पूजा करता है. परमात्मा देश काल से अपरिछिन्न है..
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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