 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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कर्तव्य और अकर्तव्य का स्पष्ट ज्ञान होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस समीक्षा में, हम जानेंगे कि इस ज्ञान का अभाव क्यों हो सकता है और इससे कैसे बचा जा सकता है।
कारण-
पक्षपात:
व्यक्ति कभी-कभी अपने स्वार्थ के कारण पक्षपात कर सकता है, जिससे उसे कर्तव्य और अकर्तव्य का सही अंतर नहीं पता चलता।
विषमता:
विषमता की स्थितियों में, जीवन के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं, जिससे व्यक्ति को अपने कर्तव्य और अकर्तव्य का सही निर्णय नहीं हो पा सकता।
ममता:
ममता और अपने स्वार्थ के मेंदू में, व्यक्ति कभी-कभी न्याय और कर्तव्य का सही मूल्यांकन नहीं कर पाता है।
आसक्ति:
आसक्ति के कारण व्यक्ति अपने पसंदीदा क्षेत्रों में ही रुचि रख सकता है, जिससे वह कर्तव्यों की विस्तृत और समृद्धिशील दृष्टिकोण नहीं बना सकता।
अभिमान:
अभिमान के कारण, व्यक्ति अपने आत्म-महत्व की प्राथमिकता देता है, जिससे उसे दूसरों के प्रति उदार और सही कर्तव्य नहीं दिख सकते।
ज्ञान की प्राप्ति-
न्यायपूर्ण दृष्टिकोण:
व्यक्ति को न्यायपूर्ण दृष्टिकोण बनाए रखना चाहिए ताकि उसे सही और उचित रूप से कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक हो।
सामंजस्य और संतुलन:
व्यक्ति को अपने जीवन को सामंजस्य और संतुलित बनाए रखना चाहिए ताकि उसे सभी क्षेत्रों में सही कर्तव्य नजर आ सके।
सजगता:
व्यक्ति को अपने आत्म-में सजग रहना चाहिए ताकि उसे स्वयं को और अपने कर्तव्यों को सही से समझा जा सके।
उदार दृष्टिकोण:
उदार दृष्टिकोण बनाए रखने से व्यक्ति किसी भी स्थिति में न्याय और कर्तव्य का सही निर्णय कर सकता है।
अगर व्यक्ति इन कारणों से बचता है और सजग, उदार, और संतुलित बना रहता है, तो उसे कर्तव्य और अकर्तव्य का स्पष्ट ज्ञान हो सकता है। इससे उसका जीवन सार्थक और समृद्धि शील हो सकता है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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