Published By:दिनेश मालवीय

दूसरे का ज्ञान आपके किसी काम का नहीं -दिनेश मालवीय

लोग अक्सर सोचते हैं कि कोई हमें ज्ञान दे दे. कोई सिद्धि दे दे. इसके लिए वे अनेक साधु-संतों के पास जाते हैं, मिन्नतें करते हैं, सेवा करते हैं. आजकल तो अनेक नकली साधु लोगों को मन की शान्ति प्रदान करने का दावा भी करने लगे हैं. लेकिन कोई भी सच्चा साधु ऐसा दावा नहीं करता. वह मार्गदर्शन कर सकता है और आशीर्वाद दे सकता है. लेकिन ज्ञान या सिद्धि के लिए साधना तो आपको ख़ुद ही करनी पड़ेगी. कोई दूसरा इसमें कोई मदद नहीं कर सकता.

इस प्रसंग में एक कथा पढने में आती है. एक बहुत धनवान व्यक्ति था. सभी सुख-सुविधाएँ प्राप्त होने के बाद भी उसके मन में शान्ति नहीं थी. उसे किसीने एक साधु का पता बताकर कहा कि उनसे आपको मन की शान्ति मिल सकती है. वह व्यक्ति उस साधु के पास गया और अपनी समस्या बतायी. उसने उनसे मन की शान्ति प्रदान करने का अनुरोध किया.

साधु ने कहा कि जैसा मैं करूँ उसे चुपचाप देखते रहना. ऐसा करने से तुम्हें मन की शान्ति का मार्ग मिल जाएगा. साधु ने उस धनवान से कहा कि तुम धूप में बैठे रहना. साधु ख़ुद अपनी कुटिया में चला गया. धनवान आदमी का धूप में बुरा हाल हो गया. लेकिन वह साधु के निर्देश के अनुसार चुप रहा. दूसरे दिन साधु ने उसे कुछ खाने-पीने को नहीं दिया. साधु ख़ुद दिन भर तरह-तरह के पकवान खाता रहा. वह व्यक्ति चुप रहा. तीसरे दिन धनवान गुस्से में उठा और जाने लगा. साधु ने पूछा कि भाई! क्या हुआ.

धनवान व्यक्ति बोला कि मैं यह उम्मीद लेका आया था कि आपसे मुझे मन की शान्ति प्राप्त होगी. आपने तो मुझे उल्टी परेशानी ही दी. साधु ने कहा कि मैंने तो तुम्हें मन की शान्ति का मार्ग बता दिया, तुमने ही उसे नहीं समझा. मैंने तुम्हें धूप में बैठा रखा और ख़ुद कुटिया में दिनभर रहा. फिर मैंने तुम्हें भूखा रखा और ख़ुद खूब खाया. इसके द्वारा मैंने तुम्हें यह समझाने की कोशिश की कि मेरी साधना से तुम्हें सिद्धि नहीं मिलेगी. इसी तरह मन की शान्ति भी तुम्हें अपनी मेहनत और पुरुषार्थ से मिलेगी. इसके लिए तुम्हें ऐसे अच्छे काम करने होंगे, जिससे मन की शान्ति मिल सके.

साधु ने कहा कि गरीबों और दीन-दुखियों की मदद करो. अपना धन समाज के लिए उपयोगी कार्यों पर खर्च करो. अपने धन का अभिमान न करो. मानकर चलो कि यह धन ईश्वर की देन है. ऐसा भाव रखने और ऐसे सद्कर्म करना ही मन की शान्ति के लिए तुम्हारी साधना होगी.मन की शान्ति ही नहीं कोई भी सिद्धि कोई तुम्हें तश्तरी में रखकर नहीं दे सकता. साधना तो ख़ुद ही करनी पड़ती है. धनवान व्यक्ति अपने घर लौट आया. उसने साधु द्वारा दिए गये मार्गदर्शन के अनुसार काम करना शुरू किया. देखते ही देखते उसे मन की शान्ति प्राप्त हो गयी. 

 

 

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