कोणार्क-मंदिर के दक्षिण-पूर्व में 2 मील पर बंगाल की खाड़ी लहरें मारती दिखाई देती है। मन्दिर के उत्तर में लगभग आधा मील पर चंद्रभागा नदी बहती है।
कोणार्क-मन्दिर के तीन भाग हैं- विमान, जगमोहन और भोग मंडप| जगमोहन और भोग मंडप परस्पर अलग-अलग हैं। गर्भगृह की देव-प्रतिमा का सिंहासन यहाँ सुन्दर बन पड़ा है। इसका निचला भाग छोटे-छोटे हाथियों की मूर्तियों से अलंकृत है।
मंदिर का विमान और जगमोहन- दोनों एक-एक फुट ऊँचे पीठों पर स्थित है। पीठ छोटे-छोटे हाथियों की कतार और मूर्तियों से सजा हुआ है। तल पृष्ठ और खुर पृष्ठ मिलाकर उपपीठ की ऊँचाई 16 फुट 6 इंच है। इसके मुहानों पर बड़े सुन्दर तथा अलंकृत पहिये या रथ-चक्र गढ़े गये हैं। रथ चक्र का व्यास 9 फुट 8 इंच है और मोटाई 8 इंच के लगभग है।
मंदिर में सूर्य देवता की प्रतिमा स्थापित है। यह एक रथ वाला मंदिर देवता की सवारी के लिये है। इसका पहिया एक है। सम्भवतः अपनी पूर्व दशामें इस एक रथ मन्दिरको खींचनेके लिये सात घोड़े भी थे।
मन्दिर का विमान अब गिर गया है और बहुत-सी विचित्र गाथाएँ इस सम्बन्ध में प्रचलित हैं। मन्दिर का जगमोहन एक पंच-रथ वाला विशाल भवन है, जो ऊंचाई में 39 फुट 10 इंच है।
मंदिर का अपना निजी भोग मंदिर भी है; किंतु वह बाद का निर्माण किया हुआ है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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