Published By:धर्म पुराण डेस्क

कृति एवं कर्तृत्व, मानव जीवन के लिए तीन अनिवार्य आवश्यकताएं

श्री परम गुरुवे नमः

मानव जीवन के लिए तीन अनिवार्य आवश्यकताएं हैं: रोटी, कपड़ा और मकान। जिस प्रकार मोक्ष प्राप्ति के लिए रत्नत्रय अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र अनिवार्य हैं उसी प्रकार मानव के लिए रोटी कपड़ा और मकान संसारी अवस्था में अत्यंत आवश्यक है। 

अन्य प्राणी बिना वस्त्र एवं मकान के अपना जीवन यापन कर सकते हैं लेकिन मानव जाति को निवास के लिए गृह की आवश्यकता होती है। गृह में निवास करने के कारण ही उसे गृहस्थ कहा जाता है:

गृहे तिष्ठति गृहस्थः

जब गृह (अथवा मकान) का मानव जीवन में इतना महत्वपूर्ण स्थान है तो उसे स्वामी अथवा निवासी के लिए सुख समाधान दायक तो होना ही चाहिए। साथ ही निर्दोष भी रहना चाहिए। यदि वास्तु (गृह अथवा भवन) दोषयुक्त होगी तो उससे निवासी को विपरीत फल की प्राप्ति होती है। दोषयुक्त निर्मित वास्तु के प्रयोगकर्ता को अनेकों आपत्तियों का सामना करना पड़ता है तथा वह आकुल-व्याकुल हो जाता है।

जीवन के हर क्षेत्र में नियम पालन की आवश्यकता होती है। जब भी नियमों की मर्यादा लांघी जाती है तो उसके दुष्परिणाम अवश्य ही देखने के आते हैं। शासन के नियम भंग होने पर शासन दंडित करता है। 

शारीरिक स्वास्थ्य नियमों के विरुद्ध आहार विहार करने पर शरीर रोगी हो जाता है, प्रकृति विरुद्ध कार्य करने पर प्रकृति दंडित किए बिना नहीं रहती। इसी भांति वास्तु शास्त्र के नियमों के विपरीत यदि वास्तु निर्माण किया जाता है तो उससे भी अनेकानेक विपदाओं का सामना करना पड़ता है।

वर्तमान युग में मनुष्य वास्तु शास्त्र से सामान्यतः अनभिज्ञ है। शास्त्र के नियमों को ध्यान में रखे बिना जो भव्य विशाल इमारतें बनाई जाती हैं, उनके उपयोगकर्ता अनजाने में ही कष्ट पाकर खेद खिन्न होते हैं। 

जिस भांति किंपाक फल दृष्टि में आकर्षक तथा मधुर स्वादयुक्त होने पर भी विषाक्त होने से याज्य हैं। उसी भांति दोषपूर्ण, नियम विरुद्ध निर्मित वास्तु विशाल एवं आकर्षक होने पर भी अंततः दुखदायक ही होती है। अतएव यह अत्यंत आवश्यक है कि निर्माण की जाने वाली वास्तु, वास्तु शास्त्र के नियमों को ध्यान में रखकर ही बनाई जाए।

प्रत्यक्ष ही हमें संसारी प्राणियों की दुखी अवस्था दृष्टिगोचर होती है। आर्थिक, मानसिक, शारीरिक दुखों से मनुष्य दुखी हो जाते हैं। पुत्रहीनता, कुपुत्र, कलहकारिणी पत्नी, धूर्त मित्र तथा स्वार्थी संबंधियों से सामान्यतः पीड़ा देखी जाती है। मनुष्य इनसे दुखी तो होता है किन्तु कारण नहीं खोज पाता। 

सुख की खोज में यत्र तत्र भटकने पर भी सुख का कोई सूत्र उसके हस्तगत नहीं होता है। मनुष्य के इन दुखों का एक बहुत महत्वपूर्ण कारण है, दोषपूर्ण वास्तु में उसका निवास करना। दुकान, व्यापारिक भवन, उद्योग इत्यादि भवनों का विन्यास भी वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुरूप होना अत्यंत आवश्यक है। ऐसा न करने से मनुष्य अनायास ही उलझनों में घिर जाता है।


 

धर्म जगत

SEE MORE...........