 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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कुण्डलिनी शक्ति, एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा, हमारे शरीर के सूक्ष्मतम केंद्र में निहित है। इस शक्ति का अनुभव करके मानव अपने अद्भुत प्राकृतिक पोटेंशियल को जागृत कर सकता है।
कुण्डलिनी का अर्थ और उत्पत्ति:
कुण्डलिनी शब्द संस्कृत शब्द "कुण्डल" से आता है, जिसका अर्थ होता है जलाना या आग देना। इसका शारीरिक रूप से संबंध जलेबी से जोड़ा जाता है, जिसमें गोल घेरे होते हैं, और यह शक्ति हमारे शरीर के गोल चक्रों में निहित है।
कुण्डलिनी जागरण और चक्र:
कुण्डलिनी का जागरण हमारे शरीर के सात मुख्य चक्रों के माध्यम से होता है, जिन्हें आदिकाल से ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह चक्र हृदय से लेकर मूलाधार तक होते हैं, और कुण्डलिनी शक्ति इन चक्रों को ऊर्जा से भरकर जगाती है।
कुण्डलिनी के प्रभाव:
जब कुण्डलिनी जागरण होती है, तो इसके प्रभाव से व्यक्ति मानव जीवन की अद्भुतता को समझने लगता है। यह ऊर्जा उसके मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक होती है।
कुण्डलिनी जागरण के लाभ:
आत्म-साक्षात्कार: कुण्डलिनी जागरण से व्यक्ति अपनी आत्मा को और अधिक समझने लगता है, जो उसके जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद करता है।
सतत ऊर्जा: जब कुण्डलिनी जागरण होती है, तो व्यक्ति में एक सतत ऊर्जा फ्लो होती है, जिससे उसका जीवनार्थक और प्रेरणादायक होता है।
शारीरिक स्वास्थ्य: कुण्डलिनी शक्ति का सही संचार होने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, और व्यक्ति तात्कालिक रूप से ठंडक महसूस करता है।
सावधानियां और सुझाव:
कुण्डलिनी जागरण एक गंभीर प्रक्रिया है, इसलिए इसे केवल अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
सुरक्षितता के लिए, कुण्डलिनी साधना में समर्पित और आत्मनिर्भर रूप से विशेषज्ञ की निगरानी और मार्गदर्शन होना चाहिए।
योग और ध्यान का अभ्यास शुरू करने से पहले एक चिकित्सक से परामर्श करें।
कुण्डलिनी शक्ति का सही संचार और संरक्षण करके, व्यक्ति अपने जीवन को एक नए स्तर पर ले जा सकता है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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