 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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लालबहादुर शास्त्री, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और प्रधानमंत्री रहे, वे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने जीवन में अनमोल सिख दी। एक दिन उनके मित्र ने एक सवाल पूछा, जिसका उत्तर ने उनकी अद्वितीय व्यक्तिता को प्रकट किया।
उनके मित्र ने पूछा, "आप सदैव प्रशंसा से दूर रहते हैं, स्वागत-सत्कार के कार्यक्रमों में भी भागीदार नहीं होते, ऐसा क्यों?"
शास्त्री जी हँसते हुए बोले, "एक बार लाला लाजपतराय ने मुझसे कहा था - 'लालबहादुर! ताजमहल बनाने में दो तरह के पत्थरों का उपयोग हुआ है। एक तो संगमरमर, जिसका उपयोग गुंबद बनाने में किया गया है, पर दूसरा साधारण पत्थर, जिसका उपयोग ताजमहल की नींव बनाने में किया गया है। संगमरमर सब देखते हैं, पर नींव के पत्थर की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। हमें भी उसी की तरह बनना चाहिए।' तब से उन्होंने इसी सीख को अपनाया और नींव के पत्थर की तरह अपने जीवन को जीने का संकल्प लिया।
लालबहादुर शास्त्री ने अपने जीवन में सरलता, ईमानदारी, और कर्मठता की मिसाल प्रस्तुत की। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कार्यों के माध्यम से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में पुरी तरह समर्पित रहना चाहिए, चाहे वो छोटे हों या बड़े।
लालबहादुर शास्त्री का यह उपदेश हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने कार्यों के माध्यम से महत्वपूर्ण बदलाव लाने का संकल्प रखना चाहिए, चाहे वो सामाजिक जीवन में हो या राष्ट्रीय निर्माण में।
लालबहादुर शास्त्री का यह उपकार आज भी हमें प्रेरित करता है और हमें एक बेहतर भविष्य की दिशा में अग्रसर करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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