Published By:धर्म पुराण डेस्क
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शरीर का कोई भरोसा नहीं इसलिए जो श्रेष्ठ कर्म करना चाहो वो तुरंत कर लेना, समय कभी भी किसी का इंतज़ार नहीं करता।
ऐसे में हमें प्रकृति के नियमों से सीख लेते हुए अपनी ज़िंदगी को सुखी और समृद्ध बनाने का प्रातः करना चाहिए।
प्रकृति का पहला नियम वो ये कि यदि खेतों में बीज न डाला जाए तो प्रकृति उसे घास फूस और झाड़ियों से भर देती है। ठीक उसी प्रकार से यदि दिमाग में अच्छे एवं सकारात्मक विचार न भरे जाएं तो बुरे एवं नकारात्मक विचार उसमें अपनी जगह बना लेते हैं।
प्रकृति का दूसरा नियम वो ये कि जिसके पास जो होता है, वो वही दूसरों को बांटता है। जिसके पास सुख होता है, वो सुख बांटता है। जिनके पास दुख होता है, वो दुख बांटता है। जिसके पास ज्ञान होता है, वो ज्ञान बांटता है। जिसके पास हास्य होता है, वो हास्य बाँटता है। जिसके पास क्रोध होता है, वो क्रोध बांटता है।
प्रकृति का तीसरा नियम वो ये कि भोजन न पचने पर रोग बढ़ जाता है। ज्ञान न पचने पर प्रदर्शन बढ़ जाता है। पैसा न पचने पर अनाचार बढ़ जाता है। प्रशंसा न पचने पर अहंकार बढ़ जाता है।
कोई भोर ऐसी नहीं जो शाम ना हो, कोई शाम ऐसी नहीं जो भोर ना हो। कोई रात ऐसी नहीं जो प्रभात पैदा ना करे। परिवर्तन यहाँ का नियम है। हम उन चीजों को संभालने की कोशिश में लगे हैं जो सदा एक जैसी नहीं रह सकती।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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