ये भी अन्याय ऋषियों की भांति जगत के हित साधने में लगे रहते हैं। उन्होंने अपने पिता ब्रह्माजी की आज्ञा से दक्ष प्रजापति की और महर्षि कर्दम की कन्याओं को पत्नी-रूप से ग्रहण करके सृष्टि की वृद्धि की। अनेकों योनि और जातियों की सन्तान इनसे हुई।
इन्होंने महर्षि सनन्दनकी शरण ग्रहण करके सम्प्रदायकी रक्षा करते हुए तत्त्वज्ञान का सम्पादन किया और फिर अपने शरणागत जिज्ञासु गौतम को उसका दान करके जगत् में उसका विस्तार किया।
जगत के आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक शान्ति के लिये ये निरंतर तपस्या में संलग्न रहते हैं। पुराणों में इनकी चर्चा भी स्थान-स्थान पर आयी है।
कृतु:-
महर्षि कृतु भी ब्रह्मा के मानसपुत्र और षोडश प्रजापतियों में से एक हैं। उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा की आज्ञा से कर्दम प्रजापति की पत्नी देवहूति के गर्भ से उत्पन्न हुई क्रिया और दक्ष प्रजापति की सन्नति नाम की कन्या को पत्नी रूप में स्वीकार किया, उनके द्वारा साठ हजार बालखिल्य नाम के पुत्र हुए।
ये बालखिल्य ही भगवान सूर्य के रथ के आगे-आगे उनकी ओर मुँह करके स्तुति करते हुए चलते रहते हैं। इन्हीं ब्रह्मर्षियों की महामहिम तपस्या शक्ति ही सूर्य का धारण करती है और ये निरंतर उनकी उपासना में संलग्न रहते हैं।
ये महर्षि क्रतु ही वाराह कल्प में वेदों के विभाजक, पुराणों के प्रदर्शक और ज्ञानोपदेष्टा व्यास हुए थे। कहीं कहीं ब्रह्मा की बायीं आँख से इनकी उत्पत्ति कही गयी है।
पुराणों में स्थान-स्थान पर इनकी चर्चा आती है और आज भी ये ध्रुव की प्रदक्षिणा करते हुए जगत के कल्याण में लगे रहते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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