Published By:धर्म पुराण डेस्क

देखने की कला सीखिये, चश्मा छोड़िये…

नेत्र प्राणी का सर्वश्रेष्ठ अनमोल अङ्ग है। आँखो की चमक-दमक उत्तम स्वास्थ्य का परिचायक है। परंतु आजकल छोटी-छोटी आयु के किशोर बालक बालिकाओं को चश्मे लगाते देखकर हृदय दुःखी होता है। चश्मे का उपयोग नेत्र रोग की चिकित्सा नहीं है, बल्कि इसके प्रयोग से आँखो की स्वाभाविक शक्ति क्षीण होने लगती है, जिससे मनुष्य सदा के लिये चश्मे का गुलाम बन जाता है। 

यदि हम अपने आहार विहार को प्रकृति एवं ऋतु के अनुकूल ठीक रखें तथा नेत्र रक्षा निम्र सरल साधनों का सावधानी पूर्वक नियमतः पालन करें तो हमारे नेत्र आजीवन स्वस्थ रह सकते हैं तथा चश्मे से छुटकारा मिल सकता है।

नेत्र स्नान- आँखों को स्वच्छ, शीतल और नीरोग रखने के लिये अनेक बार क्रमशः प्रातः बिस्तर से उठकर, भोजन के बाद एवं सोते समय मुँह में पानी भरकर आँखों पर स्वच्छ शीतल जल के छींटे मारने से नेत्रों की दृष्टि शक्ति बढ़ती है। इसके अतिरिक्त यदि पढ़ाई-लिखाई, सिलाई कढ़ाई करते समय कभी आँखों में जरा भी थकान मालूम पड़े तो इसी प्रकार ठंडे जल से आँखों को तरोताजा करना चाहिये। यह अनुभूत प्रयोग है।

पानी में आँखें खोलिये स्नान करते समय किसी चौड़े बर्तन में स्वच्छ ताजा पानी भरकर उसमें आँखें डुबो डुबोकर खोलें और बंद करें यह क्रिया किसी नदी या सरोवर के शुद्ध जल में डुबकी लगाकर की जाय तो बहुत लाभप्रद रहती है। नेत्र-स्नान से अनेक प्रकार के नेत्र विकार दूर हो जाते हैं। कभी-कभी त्रिफला के चूर्ण को पानी में भिगोकर 12 घंटे बाद पानी छानकर उससे आँखें धोना आरोग्यप्रद रहता है।

हम रात-दिन आँखों का उपयोग करते रहते हैं, पर उनको आराम देने की ओर लापरवाही करते हैं। आँखों को आराम देने के लिये बीच-बीच में सुविधानुसार आँख बंदकर, मन को शिथिल एवं शान्त रखकर, अपनी दोनों हथेलियों से आँखों को इस प्रकार से ढके कि तनिक भी प्रकाश और हथेली का बोझ पलकों पर न पड़ने पाये।

साथ ही अन्धकार का ऐसा ध्यान करें जैसे कि आप अँधेरे कमरे में बैठे हुए हैं। इससे आँखों को पूर्ण विश्राम मिलता है तथा मन भी शान्त होता है और मस्तिष्क को भी आराम मिलता है।

नेत्र-रोगों के निवारण करने वाली इस ध्यान-विधि को ‘पामिंग' कहते हैं। इसे रोगी-नीरोगी, युवा-वृद्ध सबको नित्य कई बार करना चाहिये। यह क्रिया नेत्रों को नीरोग रखने में रामबाण समझी जाती है।

आँखों को गतिशील रखिये-गति ही जीवन है। इस सिद्धान्त के अनुसार हर अङ्ग-प्रत्यङ्ग को स्वस्थ एवं सक्रिय रखने के लिये उसमें हरकत होते रहना भी आवश्यक है। पलक मारना आँख की सामान्य गति है। बच्चों की आँखों में निरन्तर गति सहजरूप से होती है।

पलक मारकर देखने से आँखो की हरकत और सफाई हो जाती है। इसके विपरीत ताककर देखने की आदत आँखों का गलत उपयोग है, इससे नेत्रों में थकान एवं जड़ता आ जाती है। परिणाम स्वरूप ठीक देखने के लिये मददगार के रूपमें चश्मा लगाना पड़ता है। 

अतः हमें पलकों को झपकाने की आदत बना लेनी चाहिये। इससे नेत्रों को पल-दर-पल आराम मिलता है। प्राकृतिक रूप से पलक झपकाते रहना नेत्र रक्षा का नैसर्गिक उपाय है।

सूर्य रश्मियों का सेवन- अरुणोदय के समय सूर्य की लाल किरणें आँखों के स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त गुणकारी हैं। इसलिये उगते सूर्य की लाल किरणों को खुली आँखों से देखना चाहिये। इसी दृष्टि से प्रातः सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर मुख करते हुए बैठकर संध्या एवं सूर्योदय से कुछ देर बाद सूर्य की सफेद किरणें बंद आँखों पर लेनी चाहिये। नित्य प्रातः (समय हो तो सायंको भी) सूर्य के सामने आँखें बंद करके आराम से इस तरह बैठे कि किरण साधा बंद पलको पर पड़ें। बैठे-बैठे धीरे-धीरे गर्दन को क्रमशः दायीं तथा बायीं ओर कंधों की सीध में एवं आगे-पीछे तथा दाय और बायीं ओर से चक्राकार गोलाई में घुमायें। 

दस मिनट ऐसा करके बंद आँखों को दोनों हथेलियों से ढककर दो मिनट पामिंग कीजिये, ऐसा प्रतीत हो कि मानो अँधेरा छा गया है। अन्त में धीरे-धीरे आँखें खोलकर उन पर ठंडे पानी के छपके मारें। यह नेत्रों के लिये अत्यन्त हितकारी एवं चश्मा छुड़ाने के लिये प्राकृतिक साधन है।

झूमने की क्रिया- आँखों के दोषों को दूर करने में झूमने का सरल व्यायाम बहुत उपयोगी होता है। इसके अभ्यास से अक्षिगोलक एवं उनके समीपस्थ भाग की नस-नाडियाँ ढीलो, मुलायम एवं तनावरहित हो जाती हैं। 

विधि इस प्रकार है- खिड़की के सामने सीधे खड़े होकर शरीर को ढीला छोड़ दें। पैरों में एक फुट की दूरी रखते हुए हाथों को दोनों ओर लटकते हुए रखें। तदुपरान्त दायीं-बायीं ओर झूमना या हिलना आरम्भ करें। इस प्रकार हिलें जैसे घड़ी का पेंडुलम (लटकन) हिलता है। 

इस क्रिया के साथ पैरों की एड़ियों को बारी-बारी से उठाते रहें, किंतु पंजों को दृढतापूर्वक धरती पर जमाये रखें खुले नेत्रों से आप ज्यों-ज्यों झूमेंगे त्यों-त्यों खिड़की भी आपसे विपरीत दिशा में घूमती या हिलती दिखायी देगी। अब आप कुछ क्षण आँखों को बंद करके झूमते रहें। फिर आँखों को खोलकर दुबारा-तिबारा अभ्यास को दोहरायें। नेत्रों के स्नायु-जाल को तनावरहित करने में इसका बड़ा महत्त्व है। अतः स्वास्थ्य प्रेमियों को इसे नित्य करना चाहिये।

आँखों की पेशियों के व्यायाम-लेटे-लेटे या बैठकर आँखों की पुतलियों को क्रमशः ऊपर की ओर ले जाकर फिर नीचे की ओर ले जायँ। ऊपर-नीचे ले जाने का तरीका सिर्फ यह है कि ऊपर को देखने का प्रयत्न करना, नीचे  की ओर देखने का प्रयत्न करना। इस प्रयत्न में गरदन तो सीधी रहनी चाहिये, गरदन को ऊपर-नीचे नहीं झुकाना चाहिये, गरदन सीधी रखते हुए बार-बार ऊपर-नीचे देखने का यत्न करना चाहिये। इसके बाद गरदन फिराये बिना पुतलियों को बायीं तथा दायीं ओर बार-बार ले जाना चाहिये। 

इसी प्रकार पुतलियों को तिरछे दायीं बायीं ओर और तिरछे ही बायीं दायीं ओर ले जाना चाहिये। तिरछे दायीं-बायीं ओर देखने का यत्न करेंगे तो पुतलियाँ अपने आप दायीं-बायीं तथा बायीं दायीं तरफ चली जायँगी। अन्त में पुतलियों को पहले दायीं ओर से चक्राकार गोलाई में घुमायें, फिर बायीं ओर से चक्राकार गोलाई में घुमायें । 

गरदन को बिना हिलाये इस प्रकार कई बार करें। इन क्रियाओंके बाद नेत्रों को (पामिंग के द्वारा) विश्राम दें। आँखों की पेशियों के ये व्यायाम करते हुए शुरू में दोनों कनपटियों को हाथ की हथेलियों से थपथपाते रहना चाहिये। इससे नेत्रों की सम्बद्ध पेशियों में रक्त का संचार बढ़ता है, जिससे पेशियों का बल बढ़ता है और वे नेत्रों को प्रभूत पोषक तत्त्व पहुँचा सकती हैं।

आँखों की सामान्य कसरतें- 

(1) पलकों को तेजी से खोलने तथा बंद करने का अभ्यास करें। प्रातः सायं आधा-एक मिनट करें। 

(2) आँखों को जोर से बंद करें और दस सेकंड बाद तुरंत खोल दें। चार-पाँच बार दोहरायें। 

(3) आँखों को खोलने-बंद करने की कसरत जोर देकर क्रमशः करें। अर्थात् जब एक आँख खुली रखें, उस समय दूसरी आँख बंद रखें। आधा मिनट करना काफी है। 

(4) नेत्रों के पर्दों पर हाथों की अँगुलियों से (नाक की ओर से कान की ओर ले जाते हुए) हलकी हलकी मालिश करें। जब भी अँगुलियाँ पलकों से हटें, आँखें खोल लें और पुनः पलकों पर अँगुलियाँ लाते समय पलकों को बंद कर दें। यह साधारण व्यायाम भी आँखों की नस-नाडियों का तनाव दूर करने में बहुत लाभदायक है। कुछ सेकंड इसके नियमित अभ्यास से नेत्रों के अनेक विकार शीघ्र ही दूर हो जाते हैं तथा आँखों को आराम मिलता है। 

(5) दूर-दृष्टि-व्यायाम के लिये रात को खुली जगह में लेट जाइये। अब दूर सुदूर आकाश, चाँद तथा तारों के सामने टकटकी लगाकर (आँखों में आँसू भर जाय तब तक) देखने का प्रयास करें। इतना याद रखें कि यह प्रयोग धूप अथवा तेज रोशनी वाले विद्युत्-गोले के सामने हरगिज न करें। 

केवल रात्रि के समय आकाश तथा चाँद-तारों की ओर देखते हुए यह प्रयोग करना है। कुछ लोगों की दृष्टि दूरवर्ती पदार्थों को देख नहीं सकती, उन लोगों को बाह्य त्राटक करना चाहिये और चन्द्र, तारे, नक्षत्र, हरे भरे पर्वत शिखर या अन्य किसी दूरस्थ लक्ष्य पर दृष्टि स्थिर करने का प्रयत्न करना चाहिये। इससे आँखों की क्षति दूर हो जाती है और कालान्तर में आँखें पूर्ववत् हो जाती हैं।

अन्य विधि—किसी दरवाजे या खिड़की में फूलों का कोई गमला अथवा अन्य कोई हरी-भरी वस्तु रखिये और उससे तीन मीटर की दूरी पर खड़े होकर उस वस्तु की ओर दृष्टि कीजिये। अब किसी एक हाथ की तर्जनी (अँगूठे के पासवाली) अँगुली को दोनों आँखों के सामने लाकर 25 सेंटीमीटर की दूरी पर खड़ी कीजिये और अब अँगुली को देखते हुए खिड़की में रखे हुए उस गमले आदि पर दृष्टि डालनी चाहिये।

यह क्रिया एक एक सेकंड में विश्राम पर क्रमश: पाँच बार करनी चाहिये इस क्रिया को आप जब चाहें तभी कर सकते हैं। इससे नेत्र-ज्योति बढ़ती है। यदि इस क्रिया के पहले और बाद में पामिंग भी कर लें तो अच्छा है। वृद्धों के लिये तो यह रामबाण है। इससे नेत्रों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

सही ढंग से पढ़ें या देखें – 

(1) चकाचौंध करने वाले अति तीव्र प्रकाश में देखना अथवा सूर्य ग्रहण में सूर्य या चन्द्र ग्रहण में चन्द्रमा को देखना सर्वथा हानिकारक है। इसी प्रकार मध्यम प्रकाश में अथवा लेटे-लेटे पढ़ना भी हानिकारक है। पढ़ते समय पुस्तक नीचे की ओर हो इसका भी ध्यान रखें। 

(2) बिलकुल अँधेरे में या अधिक रोशनी में पढ़ने-लिखने, सीने-पिरोने आदि से नेत्रों पर जोर पड़ता है, जिससे दृष्टि कमजोर पड़ जाती है।

नेत्रों का शरीर-यन्त्र से सम्बन्ध – नेत्रों की सुरक्षा का सम्बन्ध पेट तथा हमारे आहार से भी है। शरीर में विकार उत्पन्न करने में क़ब्त एक प्रमुख कारण है। यदि पेट साफ रहे तथा क़ब्त न होने दिया जाय तो नेत्र दोष से भी बहुत कुछ बचा जा सकता है। इसके लिये संतुलित तथा हलका आहार लेना चाहिये। अधिक नमक, मिर्च, मसाले, खटाई और तले हुए पदार्थों से यथासम्भव बचना चाहिये। नेत्र- व्याधियों में विटामिनों की कमी का भी बहुत हाथ है। 

उदाहरण के लिये 'विटामिन ए' की कमी से नेत्रों की ज्योति कम हो जाती है तथा प्राणी रतौंधी का शिकार हो जाता है। 'विटामिन बी' की कमी से आँखें लाल हो जाती हैं और उनमें जलन होकर पानी बहने लगता है। इसी प्रकार 'विटामिन सी' की कमी से आँखों में भारीपन महसूस होना, उनका जल्दी थक जाना आदि विकार हो जाते हैं तथा नेत्र के लेंस को हानि पहुँचती है, उसमें मोतियाबिंद तक हो जाता है। 

नेत्रों और शरीर को स्वस्थ रखने के लिये सलाद, हरी सब्जियाँ प्रचुर मात्रा में लेते रहना चाहिये। 'विटामिन डी' सूर्य की किरणों से एवं दूध-दही, मक्खन आदि से प्राप्त होता है। इस विटामिन का भी असर आँखों पर अच्छा होता है। इससे ज्ञान-तन्तुओं का पोषण होता है।

योग भगाये रोग-योग-क्रियाओं में आसनों का अत्यधिक महत्त्व है। वैसे सर्वानासन नेत्र-विकारों को दूर करने एवं ज्योति बढ़ाने में सर्वोत्तम हानिरहित आसन है। इसके अलावा योग-मुद्रासन, सिंहासन, भुजंगासन आदि आसन नेत्र- हितकारी रहते हैं। प्राण मुद्रा- हमारे शरीरकी प्रत्येक क्रिया एक विशेष ऊर्जा से सम्पन्न की जाती है, जिसे 'प्राण ऊर्जा' कहते हैं। प्राण-ऊर्जा की जरा-सी भी कमी व्याधियों को शरीर पर आक्रमण करने का अवसर प्रदान कर देती है। अतः शरीरमें प्राण ऊर्जा का पर्याप्त मात्रा में निरन्तर उत्पन्न होना अति आवश्यक है।

प्राण ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है प्राण मुद्रा सबसे छोटी (कनिष्ठिका) अंगुली तथा इसके पासवाली (अनामिका) अँगुली के शीर्षो (अग्र-भागों) को अँगूठे के शीर्ष पर मिलाकर यह मुद्रा बनती है। यह मुद्रा स्वस्थ तथा अस्वस्थ दोनों ही प्रकार के मनुष्य द्वारा व्यवहार में लायी जा सकती है। इस मुद्रा को सम्पन्न करने हेतु कोई निश्चित सीमा भी नहीं है। कोई भी व्यक्ति इसे वाञ्छित समय तक कर सकता है। यह पूर्ण निरापद है और इसे 30 मिनट से अधिक समय के लिये रोजाना सम्पन्न करने वाले के नेत्र विकार दूर होते हैं तथा नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।

नेत्र ज्योति के लिये 'जल-नेति' करें- भारतीय योग शास्त्र में इसका विशेष स्थान है। इससे जुकाम तथा नेत्र रोगों में आशातीत सफलता मिली है। विधि- एक टोंटीदार बर्तन में थोड़ा सा नमक मिलाकर कुनकुना जल भर लें। टोंटी को नाक के छिद्र में लगाकर सिर को थोड़ा-सा दूसरी ओर झुकाकर बर्तन को ऊपर उठायें ताकि पानी नाक में जा सके, उस समय श्वास मुँह से ही लें। 

पानी एक नासिका में से जाकर दूसरी नासिका से बाहर निकलेगा। इसी प्रकार दूसरी नासिका को ऊपर करके उसमें से पानी डालकर पहली नासिका से निकालें। इसमें ध्यान रखें कि नाक से श्वास बिलकुल नहीं लें, अन्यथा पानी मुँह में चला जायगा। 

ध्यान रखने की दूसरी बात यह है कि 'जल-नेति' करके धौंकनी की तरह तेज श्वास द्वारा नाक का पानी बाहर अवश्य निकाल देना चाहिये। जल-नेति से प्रभावित होकर अब तो अमेरिका के 'नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शन' ने भी (नेसल वाशिंग) नासिका-मार्जन की सिफारिश की है। यथाविधि जल-नेति करने वाले का चश्मा छूट जाता है। इस अनुभूत प्रयोग को करके देखिये, चमत्कारी लाभ होगा।

(श्रीनृसिंहदेवजी अरोड़ा)


 

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