Published By:धर्म पुराण डेस्क

आइये जाने शनि ग्रह को (पुराणों व ज्योतिष शास्त्र में) …

इतिहास-पुराणों में शनि की महिमा बिखरी पड़ी है। 

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि गणेश जी का जन्म होने पर सभी ग्रह उनके  दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुँचे। जैसे ही शनि ने आख़िर में भगवान गणेश के चेहरे पर नज़र डाली, उनका मस्तक कट कर धरती पर गिर गया। बाद में हाथी का सिर उनके धड़ पर लगाकर बालक गणेश को जीवित किया गया। 

शास्त्रों की यही बातें ज्योतिष में भी प्रतिबिम्बित होती हैं। ज्योतिष में शनि को ठंडा ग्रह माना गया है, जो बीमारी, शोक और आलस्य का कारक है। लेकिन यदि शनि शुभ हो तो वह कर्म की दशा को लाभ की ओर मोड़ने वाला और ध्यान व मोक्ष प्रदान करने वाला है। साथ ही वह करियर को ऊंचाइयों पर ले जाता है। 

लोगों में शनि को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। बहुत-से लोगों का मानना है कि शनि देव का काम सिर्फ़ परेशानियाँ देना और लोगों के कामों में विघ्न पैदा करना ही है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार शनि देव परीक्षा लेने के लिए एक तरफ़ जहाँ बाधाएँ खड़ी करते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रसन्न होने पर वे सबसे बड़े हितैशी भी साबित होते हैं।

वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार सूर्य पुत्र शनि देव का नाम सुनकर लोग सहम से जाते है लेकिन हिंसा कुछ नहीं है, बेशक शनि देव की गिनती अशुभ ग्रहों में होती है लेकिन शनि देव इंसान के कर्मों के अनुसार ही फल देते है, शनि बुरे कर्मों का दंड भी देते है।

शनि उच्च राशि तुला में प्रवेश कर रहे है, जिनकी कुंडली में शनि तुला राशि गत है जिस भाव में बैठा है उस भाव सम्बन्धी कार्यों में वृद्धि करेगा जब शनि तुला राशि में सूर्य के साथ युति होने के कारण राजनीतिक लोगों के लिए अशुभ फल देगा|

वाद-विवाद में बढ़ोतरी होगी, धातु की बढ़ोत्तरी होगी, भारतीय राजनीति में बहुत ज्यादा उतार चढ़ाव देखने को मिलेगा, जिनका शनि अच्छा होगा भिखारी से राजा बन जायेगा और जिनका अशुभ होगा राजा से भिखारी बनते देर नहीं लगेगी| 

जिनकी कुंडली में शनि तुला राशि गत है जिस भाव में बैठा है उस भाव सम्बन्धी कार्यों में वृद्धि करेगा, यदि शनि लग्न, केंद्र या त्रिकोण में है या अपनी उच्च राशि में स्वग्रही या मित्र राशि में है तो अपनी दशा अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करेगा, मानसागरी ग्रन्थ के अनुसार शनि देव के शुक्र बुध मित्र. बृहस्पति सम. शेष शत्रु हैं।

नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

ऊँ शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोभिरत्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।

ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।।

वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार शनि की महिमा ही कुछ ऐसी है कि उनका इंसान की कर्म कुंडली पर भारी होना इंसान को डरा देता है। 

शनि देव की यही छवि देवताओं में उन्हें खास स्थान दिलाती है। शास्त्रों में शनि को सूर्य का पुत्र और मृत्यु के देवता यम का भाई बताया गया है। शनि की विशेषताओं का बखान करते हुए प्राचीन ग्रंथ “श्री शनि महात्म्य” में लिखा गया है कि शनिदेव का रंग काला है और उनका रूप सुन्दर है, उनकी जाति तेली है और वे काल-भैरव की उपासना करते हैं।

ज्योतिष में साढ़ेसाती और ढैय्या आदि दोषों का कारण शनि को माना गया है। जब वर्तमान समय में शनि किसी की चंद्र राशि में, उससे एक राशि पहले या बाद में स्थित हो तो उसे साढ़ेसाती कहते हैं। 

कहते हैं कि साढ़ेसाती के दौरान भाग्य अस्त हो जाता है। लेकिन शनि को सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाला ग्रह माना जाता है। यदि शनि की नियमित आराधना की जाए और तिल, तेल व काली चीज़ों का दान किया जाए, तो शनि देव की अनुकंपा पाने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता।

शास्त्रों के मतानुसार हनुमान जी भक्तों को शनि के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। रामायण के एक आख्यान के मुताबिक हनुमान जी ने शनि को रावण की कैद से छुड़ाया था और शनिदेव ने उन्हें वचन दिया था कि जो भी हनुमानजी की उपासना करेगा, शनि देव सभी मुश्किलों से उसकी रक्षा करेंगे।


 

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