हमारी संस्कृति और धर्म में झूठ बोलने को बहुत बड़ा पाप माना गया है. कहा गया है, कि झूठ बोलने वाले पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए. वैसे तो जीवन में किसी परिस्थिति के वशीभूत हर किसीको कभी न कभी झूठ बोलना ही पड़ता है, लेकिन उसके भी उपयुक्त कारण होने पर ही उसे सही माना जाता है. लेकिन जूठ बोलने की आदत बहुत आत्मघातक होती है. ऐसी आदत के शिकार व्यक्ति की समाज में कोई इज्जत नहीं होती. उसकी कोई विश्वसनीयता नहीं होती.
आदतन झूठ बोलने वाला व्यक्ति कभी सच भी बोल रहा हो, तो उसे लोग झूठ ही समझते हैं. हाल भी में एक सर्वे में पाया गया, कि अधिकतर लोग झूठ बोलते हैं और वे इसे बुरा भी नहीं मानते. यह एक तरह से उनके स्वभाव का ही अंग बन गया है. हमारे शास्त्रों में और संतों की वाणी में झूठ न बोलने पर बहुत जोर दिया गया है. इसके अनेक नुकसान होते हैं. झूठ बोलने से आपकी वाणी के तेज के साथ ही आपका आत्म-तेज भी चला जाता है. तुसलीदास ने कहा है कि -“नहीं असत्य सम पातकपुंजा” यानी असत्य बोलने से बड़ा पाप का कोई पुंज नहीं है. बहरहाल, किसी अच्छे उद्देश्य के लिए मजबूरन झूठ बोलना पड़े, तो उसे बुरा नहीं बल्कि सराहनीय माना गया है.
झूठ बोलना या झूठी गवाही देना या झूठी और नकली वस्तुओं का लेन-देन या प्रयोग इसलिए वर्जित है. ज्योतिष के अनुसार, झूठ या असत्य दोनों को राहु का कारक माना गया है. भोजन मंगल का और चन्द्र जल का कारक है. राहु का स्पर्श चन्द्र/मंगल से नहीं होना चाहिए. लगातार ऐसा करने से राहु बलवान होता चला जाता है, जिससे कलह, अशांति, क्लेश, दुर्भाग्य, शोक, अपयश और दण्ड आदि मिलते हैं. साथ ही बरकत नहीं रहती.
झूठ बोलने की बात अपनी जगह, लेकिन हमारी संस्कृति में जूठा खाने को भी बहुत बुरा माना गया है. इस सम्बन्ध में नियम बहुत कठोर है. यहाँ तक कि यदि पानी पीते समय अपने ही मुख से पानी की कोई बूँद निकलकर भोजन में गिर जाए, तो उस भोजन को भी खाने योग्य नहीं माना जाता. हमने अक्सर देखा है, कि लोग आपस में प्रेम जताने या लाड़ लड़ाने के लिए एक-दूसरे का जूठा खाते-पीते रहते हैं. आजकल यह बहुत अधिक होने लगा है. इसे आत्मीयता और स्नेह का प्रतीक माना जाने लगा है.लेकिन यह शारीरिक और मानसकी सेहत के लिए नुकसानदायक है. इसके पीछे बहुत वैज्ञानिक कारण हैं. आप जिसका जूठा खा रहे हैं, उनके भीतर यदि कोई संक्रमण हो तो वह आपमें आ जाएगा. इसके और भी अन्य कारण हमारे शास्त्रों में बताये गये हैं. आप जिसका जूठा खा-पी रहे होते हैं, उसके अनेक बुरे संस्कार भी आपमें प्रवेश कर जाते हैं. लिहाजा, जूठा खाना और खिलाना, जूठा पीना और पिलाना दोनों को बुरा माना गया है.
झूठ और जूठन दोनों को ही व्यवहार शास्त्रों ने वर्जित किया है. इससे आत्मगौरव नष्ट होता है. मनोबल में कमी आती है और अपराधबोध घर कर जाता है, जो बहुत घातक होता है. शकुन की दृष्टि से ऐसा माना जाता है कि यदि खाते समय मुख से कोई चीज बाहर गिर जाए या छलक जाए, तो उसे फिर उठाकर नहीं खाना चाहिए. यह किसीकी नीयत उस चीज पर होने का भी संकेत माना जाता है. अर्थात, आप कोई चीज खा-पी रहे हैं और उसे देखने वाले की उसे ग्रहण करने की इच्छा हो, तो आपके मुंह से वह गिर या छलक जाती है, ऐसा भी माना जाता है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए हमें अपने व्यवहारिक जीवन में झूठ बोलने और जूठा खाने से बचना चाहिए, वरना इनके बुरे परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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