Published By:धर्म पुराण डेस्क

चलते रहना ही जिंदगी है

जीवन चलते रहने का नाम है किसी भी स्थिति परिस्थिति में व्यक्ति को निराश होकर कदम नहीं रोकने चाहिए। हर हाल में चलते रहने से ही सफलता मिलती है। मंजिल उसी को मिलती है जो चलते रहते हैं करते रहते हैं। लेकिन जो हाथ पर हाथ रख कर बैठ गए उन्हें सफलता कैसे मिलेगी।

चलते रहो-

किसी गांव में एक लकड़हारा रहता था. वह अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए दिन-रात परिश्रम करता, फिर भी घोर अभावों से घिरा रहता. उसके इस दैनिक कर्म और स्थिति को एक महात्मा देखते रहते, एक दिन महात्मा ने उस लकड़हारे से कहा- "बच्चा! आगे चलो... आगे चलो... और आगे चलो.'

लकड़हारा जहां पहले जाता था उससे कुछ दूर आगे बढ़ गया. उसे वहां चंदन का वन दिखाई दिया. वह लकड़ियां काट लाया. चंदन की लकड़ियां खूब महंगी बिकी. फिर एक दिन उसे वही महात्मा मिले. उन्होंने लकड़हारे को समझाया- "बच्चा! जीवन में एक ही स्थान पर मत रुको... चलते रहो... चलते रहो. नदी के जल के समान चलते रहोगे तो साफ-सुथरे और स्वस्थ रहोगे. तालाब के जल के समान रुक गये तो सड़ जाओगे. अतः चलते रहो... चलते रहो... बढ़ते रहो... और आगे... और आगे."

लकड़हारे ने विचार किया और चंदन वन से और आगे बढ़ गया. आगे चल कर उसे तांबे की खान मिली और उसने बहुत धन कमाया. आगे चल कर उसे चांदी की खान मिल गयी और वह मालामाल हो गया.

एक दिन उसे फिर वही महात्मा मिले. वह बड़े प्यार से समझाने लगे “बच्चा! यहीं मत रुकना.... आगे चलते रहना."

अब लकड़हारा और आगे बढ़ने लगा. परिणामस्वरूप उसे सोने की खान मिली. उसने खूब धन कमाया. फिर, वह आगे बढ़ा उसे हीरे की खान मिली. वह बहुत बड़ा धनवान बन गया. उसके आनंद का पारावार न था. यह निरंतर आगे बढ़ने का ही परिणाम था.
 

धर्म जगत

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