जीवन को सुखद और खुशहाल बनाने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने ऊपर कुछ चीजों को हावी नहीं होने दें। निम्नलिखित कुछ चीजें हैं जो आपके जीवन को सुखद बनने से रोकती है !
नकारात्मकता: नकारात्मक सोच और दृष्टिकोण से दूर रहें। यदि हम हमेशा नकारात्मक सोचते हैं, तो हमारी मनोदशा खराब होती है और हम सुखी नहीं रह पाते। सकारात्मक सोच से हमारी दृष्टि में हमारे लिए अवसरों को देखने की हमारी क्षमता विकसित करती है ।
अनुशासनहीनता: अपने जीवन में अनुशासन को महत्व दें। समय का सही उपयोग करना, अपने लक्ष्यों की साधना करना, अपने वादों का ध्यान रखना, एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाना आदि अनुशासन के महत्वपूर्ण पहलू हैं। अनुशासन के बिना, जीवन अव्यवस्थित और असंयमित्त हो जाता है ।
अत्यधिक चिंता: अत्यधिक चिंता करने से जीवन और कठिन हो जाता है और सुख दुर्लभ हो जाता है। यह महत्वपूर्ण है कि हम चिंता को नियंत्रित करें और सकारात्मक तरीके से अपने जीवन पर नियंत्रण रखें। मैडिटेशन, योग, ध्यान और संयमित जीवन शैली जैसी तकनीकें चिंता को कम करने में मदद कर सकती हैं।
अप्रभावशाली संबंध: सुखद जीवन के लिए, सही संबंध बनाना महत्वपूर्ण है। अप्रभावशाली और अनुकरणीय लोगों के साथ संबंध बनाने का प्रयास करें जो आपको समर्पित करें, प्रेरित करें और आपकी प्रगति को संभालें। इसके अलावा, परिवार, मित्र और पार्टनर के साथ गहरा संबंध बनाए रखने का भी प्रयास करें।
यदि हम इन सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाते हैं, तो हमें बेहतर और सुखद जीवन की संभावना होती है। यह महत्वपूर्ण है कि हम सदैव सकारात्मक रहें और खुशहाली की ओर प्रगति करें।
हम जीवन से अपेक्षाएं रखते हैं और कुछ चीजें प्राप्त करना चाहते हैं। लेकिन इसके साथ हमें यह भी समझना चाहिए कि सब कुछ हमें प्राप्त नहीं होता है और हमें कुछ चीजें छोड़नी चाहिए। जीवन को सुखी और सफिशिएंट बनाने के लिए निम्नलिखित बातों से बचना जरूरी हो सकता है:
लोभ: लोभ एक गंभीर विकार है जो हमें खुशहाली से दूर कर सकता है। अत्यधिक मतभेद, संबंधों में समस्याएं और दुख का मुख्य कारण लोभ होता है। हमें संतुलित और यथार्थपूर्ण चीजों की ओर दृष्टि रखनी चाहिए, और लोभ की आकर्षण से बचना चाहिए।
स्वार्थ: अपनी मानसिक और आध्यात्मिक संवेदनशीलता खोने के लिए स्वार्थ एक मुख्य कारक हो सकता है। हमें अपनी सामान्य भावनाओं के पार जाकर दूसरों की जरूरतों को समझना चाहिए और सेवा करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। स्वार्थपूर्णता से मुक्त होने पर ही हम वास्तविक संतोष और सुख प्राप्त कर सकते हैं।
अहंकार: अहंकार और घमंड हमारे संबंधों को क्षयित कर सकते हैं और हमें सम्मानित और प्रेरित व्यक्ति बनने से रोक सकते हैं। हमें सम्मान के साथ दूसरों के साथ व्यवहार करने, सहनशीलता और सम्मान की भावना बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।
आपातकालिकता: हमारे जीवन में कठिनाइयाँ और परिस्थितियाँ आ सकती हैं, लेकिन हमें आपातकालिकता और उत्सर्गवाद की भावना से बचना चाहिए। हमें स्थिरता, तैयारी और सामर्थ्य के साथ इन परिस्थितियों का सामना करना चाहिए, और सकारात्मक और समाधानकारी होकर इन्हें पार करने की कोशिश करनी चाहिए।
यदि हम इन बातों से बचते हैं, तो हमारा जीवन अधिक सुखद और सार्थक हो सकता है। हमें यह समझना चाहिए कि अपनी मनोवृत्ति, भावनाएं और कर्मों के माध्यम से हम स्वयं अपने जीवन का निर्माण कर सकते है।
* चलो ले चलूं तुम्हें,
* आओ समुद्र की थाह ले लें,
* आओ आकाश को लांघ लें,
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BHAGIRATH H PUROHIT
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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