Published By:दिनेश मालवीय

अजामिल की कथा का मर्म बहुत कम समझा गया

अनेक प्रकार के भ्रम पैदा हो गये

-दिनेश मालवीय

हमारे शास्त्रों में बहुत सी ऎसी कथाएं हैं, जो जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण संदेश देती हैं. अनेक प्रकार के चारित्रों और उनकी प्रेरक कथाओं से हमारा पुराण साहित्य भरा पड़ा है. इन कथाओं ने युगों-युगों से हमारे समाज को नैतिक रूप से अधिक गिरने नहीं दिया. आज जो नैतिक पतन की अधिकता दिखायी दे रही है, उसके पीछे एक बड़ा कारण यह है, कि हम इन कथाओं और उनमें निहित संदेश से दूर चले गये हैं.

पुराणों में अजामिल की कथा अनेक युगों से प्रचलित है. पहले के समय में जो ज्ञानवान लोग होते थे, वे इस कथा के मर्म को समझकर लोगों को समझाने में सफल हो जाते हैं. लेकिन आज उतनी गहरी व्याख्याएं कम ही देखने को मिलती हैं.

आमतौर पर यही बताया जाता है, कि किसी पापी के मुख से मरते समय यदि किसी भी रूप में भगवान् का नाम निकल आये, तो उसे वैकुण्ठ मिल जता है. इसी कथा को सुनकर लोग अपने बच्चों के नाम भगवान् के नाम पर रखते थे. उनकी ऎसी मान्यता रही, कि मरते समय भगवान् के नाम वाले बच्चे को पुकारूँगा, तो वैकुण्ठ मिल जाएगा. 

यह बात इतनी सरल नहीं है. आज के घोर तार्किक लोग इस बात का ख़ूब मज़ाक बनाते हैं. वे खिल्ली उड़ाते हुए कहते हैं, कि ज़िन्दगी भर ख़ूब उलटा –सुलटा करो और मरते समय भगवान् के नाम वाले बच्चे को पुकार लो, तो स्वर्ग कैसे मिल सकता है. उन्हें इस तरह की खिल्ली उड़ाने अवसर हमने दिया है.

मनुष्य का स्वाभाव और चित्त इस तरह का होता है, कि वह कभी भी अच्छी या बुरी चीज को तत्काल ग्रहण कर लेता है. बुरे से बुरा व्यक्ति भी साधु हो जाता है और परम साधु कोटि का व्यक्ति भी पापी हो जाता है. स्वभावव से ही मनुष्य का चित्त बुरी चीज को जल्दी ग्रहण करता है. पाप की ओर जल्दी प्रवृत्त हो जाता है. लेकिन किसी भी पाप से उभरने के उपाय भी मौजूद हैं. अपनी भूल को हम कभी भी सुधार सकते हैं. अंग्रेजी में भी एक कहावत है कि It is never too late to mend. हमारे पुराने शास्त्रों में इसके सम्बन्ध में एक बहुत प्रीतिकर कथा आती है.

प्राचीन काल में कन्नौज नगर में अजामिल नाम का एक ब्राह्मण रहता था. बुरे लोगों की संगति में पड़कर उसका सदाचार नष्ट हो गया. वह अनेक प्रकार के पाप करके जीवन-यापन करने लगा. पहले वह विद्वान, सदाचारी और पवित्र व्यक्ति था. एक दिन वह समिधा लेने के लिए वन में गया. समिधा लेकर जब वह लौट रहा था, तो उसने एक निकृष्ट व्यक्ति को एक वैश्या के साथ काम-क्रीड़ा करते देखा. इस दृश्य को देखकर उसमें कामासक्ति हो गयी. वह कामांध हो गया. उसने ख़ुद को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे नाकामी हाथ लगी. वह दृश्य उसके मन-मस्तिष्क में बैठ गया. वह उस वैश्या को समझा-फुसलाकर अपने घर ले आया और अपनी पत्नी को बाहर निकाल दिया. अजामिल उसके साथ सदा पाप कर्म में संलग्न रहने लगा.

यह एक तथ्य है, कि पाप आँख के जरिये ही मन में आता है. आँखों में विकार आते ही मन भ्रष्ट हो जाता है. मन के भ्रष्ट होने पर व्यक्ति मन के हाथों परवश हो जाता है. इसीलिए हमारे पूर्वजों ने बुरे दृश्य देखने से बचने का उपदेश दिया है. हमारा मन एक कम्पुटर की चिप की तरह है, जिसमें हमारे द्वारा देखी जाने वाली हर चीज अंकित हो जाती है.

परिवार के भरण-पोषण के लिए अजामिल लूट-पाट तक करने लगा. वह हत्या करने से भी नहीं चूकता था. उसका जीवन घोर पाप से भर गया. इसी बीच एक दिन मौत ने उसे आ दबोचा. यमदूत उसे लेने आ गये. उनके विकराल और डरावने रूपों को देखकर अजामिल डर गया. यमदूत अजामिल के शरीर से सूक्ष्म शरीर को खींचकर अलग करने लगे. इससे उसे भारी कष्ट होने लगा.

वैश्या से अजामिल छोटा पुत्र था, जिसका नाम नारायण था. अजामिल उसे बहुत प्यार करता था. डरे, सहमें अजामिल ने ‘नारायण नारायण’ कहकर आवाज दी. इस शब्द के उच्चारण से विष्णुदूत वहाँ आ पहुंचे. उन्होंने यमदूतों को अजामिल को ले जाने से रोक दिया. यमदूतों और विष्णुदूतों के बीच संवाद का भागवत ने बहुत सुंदर वर्णन किया गया है.

भगवान् के गण इसलिए नहीं आये, कि उसने बेटे नारायण को पुकारा था, जिसके बहाने उसके मुख से भगवान् का नाम निकल गया.

बस यहीं इस प्रसंग का सूक्षम अर्थ छिपा है. दरअसल अजामिल को बेटे नारायण का नाम पुकारने से नहीं, बल्कि उस नाम के बहाने ईश्वर का स्मरण करने से से सद्गति मिली.

इसके पीछे संदेश यह है, कि यदि जीवन के अंतिम समय में अपने किये हुए बुरे कर्मों के लिए पश्चाताप कर ले, तो उसके पुण्यकर्म प्रबल होका उसकी सद्गति में सहायक हो जाते हैं.  

इस संवाद को सुनकर अजामिल में पूर्व पुण्य कर्मों के फलस्वरूप दिव्य भाव जाग्रत हो गया. उसके जीवन की दिशा बदल गयी. उसे अपने पाप कर्मों पर पश्चाताप हुआ. उसमें वैराग्य भाव जाग उठा. वह हरिद्वार आकर गंगातट पर भगवान की भक्ति में लीन हो गया. साधना के दौरान ही वह शरीर त्याग कर वैकुण्ठ चला गया.

इस कथा से प्रेरणा मिलती है कि हमें बुरा सुनने, बुरा देखने और बुरा बोलने के साथ ही बुरे लोगों के साथ से बचना चाहिए. यदि संयोग से ऐसा होकर हम कुछ गलत कर भी बैठें तो उसके प्रयाश्चित के उपाय हैं.

धर्म जगत

SEE MORE...........