 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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"स्वयं जीओ और दूसरों को भी जीने दो" यह मंत्र यम के सिद्धांत को बखूबी व्यक्त करता है, जिसका मुख्य अर्थ है कि योगी को अपने जीवन को सकारात्मकता और सामंजस्यपूर्णता की दृष्टि से जीने की क्षमता होनी चाहिए, और उसके द्वारा दूसरों को भी वैसा ही जीने का अवसर मिलना चाहिए।
यम का अर्थ- आंतरिक अनुशासन:
यम शब्द का अर्थ है 'आंतरिक अनुशासन' या 'नियम'। इसका पालन करने से व्यक्ति आत्मा की प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन होता है और उसे आत्म-निग्रह की क्षमता मिलती है।
यम के पांच अंग:
अहिंसा (Non-Violence): अहिंसा का अर्थ है किसी भी प्राणी के प्रति हिंसा नहीं करना। यह वैष्णव समाज के लिए भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है जिसमें आपसी समरसता और सहानुभूति की भावना होती है।
सत्य (Truthfulness): सत्य का पालन करना योगी को आत्मा की आच्छादन से मुक्ति की दिशा में मदद करता है।
अस्तेय (Non-Stealing): यह योगी को अनासक्ति और संयम की शक्ति प्रदान करता है और उसे दूसरों की संपत्ति का सम्मान करना सिखाता है।
ब्रह्मचर्य (Celibacy): ब्रह्मचर्य विवेकपूर्ण और संयमित जीवन की ओर प्रेरित करता है, जिससे योगी आत्मा की प्राप्ति की दिशा में बढ़ सकता है।
अपरिग्रह (Non-Possessiveness): अपरिग्रह योगी को विषयों में संयम और दृष्टिकोण की सजगता प्रदान करता है और उसे समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
अहिंसा का महत्व:
अहिंसा का अनुसरण करना मानवता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे समरसता बनी रहती है और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। यह मानव-जीवन में समाज और संबंधों को स्थापित करने में मदद करता है और सामंजस्यपूर्ण समाज की रचना में योगदान करता है।
यम के इन पांच अंगों का पालन करने से योगी अपने मन, वचन, और क्रियाओं को निग्रह करने में सक्षम होता है और आत्मा की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होता है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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