मीन राशि का अर्थ मोक्ष के स्थान से माना जाता है| मीन राशि गुरु की राशि है और गुरु का अंक तीन है| इसलिये राजा दशरथ की जीवन लीला तीन कारणों से ही मुख मानी जाती है|
लेकिन इसी बात को अगर राजा दशरथ के नाम का पहला अक्षर देखा जाये तो वह अंग्रेजी भाषा के डी अक्षर से मान्यता रखता है| और हिब्रू ने जो अंक प्रणाली मानी है| उसके अनुसार राजा दशरथ के नाम में डी का अर्थ नम्बर चार से भी माना जा सकता है| इस प्रकार से उनके नाम के आगे चार के अंक से भी मतलब माना जा सकता है|
गुरु के अनुसार उनके चार पुत्र तीन रानियों से ही सम्बन्धित रहा| उनके दूसरे भाव के आगे मेष राशि होने से उनके पास जो धन था वह राज्य के व्यक्तियों के रूप में माना जाता था| उनके द्वारा प्रदर्शन के लिये शाही शान वृष राशि के द्वारा थी|
मिथुन राशि का चौथे भाव में बैठने के कारण उनके महल में दो रानियां कौशल्या और कैकेयी का निवास था| इन्ही दो रानियों के द्वारा राजा दशरथ का इतिहास बना था| कौशल्या के राम और कैकेयी के भरत के कारण ही उनका नाम पूरा संसार जानता है| उनके पुत्र स्थान में कर्क राशि के होने से उनका प्रभाव पुत्र प्रेम के अन्दर अधिक था|
छठे स्थान में सिंह राशि होने के कारण राज्य को राम को देने के लिये उन्हें विभिन्न प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पडा| सप्तम में कन्या राशि होने से कैकेयी से उनके मतभेद चले और कैकेयी के कारण ही उन्होंने अपने प्राणों का परित्याग किया|
राजा दशरथ के आठवें भाव में तुला राशि के होने से उनकी मृत्यु का कारण स्त्री बनी उनके लिये अपमान का कारक भी स्त्री ही बनी| धर्म और भाग्य भाव को बिगाड़ने के लिये उनके नवें भाव में वृश्चिक राशि का प्रभाव ही माना जाता है|
उन्होने अपने द्वारा श्रवण कुमार को मारने के बाद उसके माता पिता का श्राप लिया और उसी के प्रभाव से अपने को किसी प्रकार से मुक्त नही कर पाये| दसवें भाव में धनु राशि होने के बाद वे राजधर्म के लिये प्रमुख माने जाते थे| उनके पास कोई छोटा राज्य नहीं था| उनके राज्य में बड़ी शिक्षाएं और बडी कानून व्यवस्था के कारण ही उनका राज्य अति महान माना जाता है|
उनके ग्यारहवें भाव में मकर राशि होने के कारण उनके पुत्र की पत्नी सीता को अपना आधा जीवन विला रहकर ही निकालना पडा| बारहवें भाव में कुम्भ राशि होने के कारण उनकी मृत्यु के बाद उनका नाम उनके बड़े पुत्र ने ही चलाया।
श्री राम जी की तुला राशि थी| उनका प्रभाव मेष राशि के लिये विपरीत था| वे एक समाधान करता और हर काम को नियमानुसार करने वाले थे| वे राज्य के निर्णायक और कानून के लिये लडाई करने वाले अनीति को हटाने और नीति को स्थापित करने वाले थे|
उनके दूसरे भाव में वृश्चिक राशि होने के कारण जो भौतिक रूप से कमाया वह केवल मरे हुए लोगों की गिनती के रूप में जाना जाता है| उनके तीसरे भाव में धनु राशि थी| वे एक धर्म और कल्याण के रास्ते को स्थापित करने वाले अपने को मर्यादा में चलाने वाले पिता की आज्ञा का अनुसरण करने वाले माने जाते है|
उनके चौथे भाव में मकर राशि होने के उनका ह्रदय भावुकता से न भरकर केवल कर्म के लिये ही माना जाता है| पंचम में कुम्भ राशि होने के कारण श्री रामचंद्र जी का पुत्र भाव एक महान कर्म के कारक के रूप में मिलता है| और इसी के कारण उनके पास दो पुत्र लव और कुश का कारण भी मिलता है|
उनके छठे भाव में मीन राशि का भाव होने से वे केवल धर्म युद्ध के लिये पूरे चौदह साल तक वनवास में रहे और राक्षसों से युद्ध किया| सप्तम में मेष राशि होने से उनका केवल एक ही दुश्मन रहा जो रावण के नाम से जाना जाता था| और उसने अपने पापाचार के कारण उनकी पत्नी को हर लिया था| तथा पत्नी के कारण ही उनको युद्ध करना पड़ा|
अष्टम में वृष राशि होने के कारण उन्होंने भौतिक धन और राज्य को अपने से दूर रखा| तथा जो भी अपमान मिला उसके प्रति स्त्री कारण ही माने जाते है| अन्त में उन्होंने अपनी पत्नी का परित्याग किया और सरयू में जाकर प्राणों को त्यागा|
नवें भाव में बुध की मिथुन राशि होने से वे वेद और वेदांग के महान ज्ञाता| उनके वशिष्ठ विश्वामित्र जैसे कठोर और मुलायम स्वभाव के धर्मगुरु रहे। दसवें भाव में कर्क राशि होने के कारण उन्होने समुद्र में पुल का निर्माण किया| ग्यारहवें भाव में सिंह राशि होने से राज्य को प्राप्त करने के बाद भी उसे विभीषण को दान में दे दे दिया|
बारहवें भाव में उनका इतिहास केवल लडाई और वीरता के नाम से जाना जाता है| तथा अनुचरों में महावीर हनुमान का भाव गुरु की बारहवीं राशि और बुध की कन्या राशि के कारण मिलता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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