प्रेरक-प्रसंग-
मैडम ब्लावट्स्की का जन्म रूस के दक्षिण भाग में इक्टरीनसलो नामक स्थान में सन् 1831 ई० में एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उन्होंने थियोसोफिकल समाज की स्थापना में अमित योग दिया था और लोगों में निर्मल आध्यात्मिक शक्ति के प्रति श्रद्धा जगायी।
उनके जीवन का एक मार्मिक प्रसंग है, जिससे उनके परहित-चिंतन पर प्रकाश पड़ता है। अपनी विचारधारा के प्रचार के लिये वे अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर में जा रही थीं। उन्होंने प्रथम श्रेणी का टिकट लिया था और हारवर में जहाज पर चढ़ने ही जा रही थी कि देखा, एक स्त्री अपने दो बच्चों को साथ लिये सिसक कर रो रही है।
ब्लावट्स्की ने रोने का कारण पूछा- 'बहन! मेरे पति ने मुझे अमेरिका बुलाने के लिये रुपये भेजे थे। जहाज के एक धोखेबाज एजेंट ने मुझे नकली टिकट देकर मेरे पैसे ठग लिए। मैंने उसको बहुत खोजा, पर वह दीखता ही नहीं। मेरे टिकट साधारण श्रेणी के थे।' स्त्री ने अपनी विवशता प्रकट की। ब्लावट्स्की कोमल हृदय उसकी वेदना से द्रवित हो उठा।
'बहन! बस इतनी ही बात है ? इसके लिये रोने-धोने से लाभ ही क्या है।' करुणामयी ब्लावट्स्की ने मुस्कराकर कहा- स्त्री को अपने बच्चों सहित पीछे-पीछे आने का संकेत किया। वह ब्लावट्स्की की सद्भावना से आशान्वित हो उठी।
ब्लावट्स्की जहाज के एजेंट के पास गयी, उन्होंने अपना प्रथम श्रेणी का टिकट बदल दिया, उसके स्थान पर साधारण श्रेणी के चार टिकट ले लिये।
'आओ, बहन ! जहाज खुलना ही चाहता है। हम शीघ्रता से अपने स्थान पर चलो चलें।' ब्लावट्स्की के पीछे-पीछे स्त्री अपने दोनों बच्चे लेकर जहाज पर चढ़ गयी। ब्लावट्स्की ने साधारण स्थान पर खड़े होकर न्यूयॉर्क की यात्रा पूरी की।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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