Published By:धर्म पुराण डेस्क

मध्य प्रदेश: जाने खजुराहो के बारे में..पूरा इतिहास, एक मंदिर जो दुनिया के लिए अजूबा है..

मध्य प्रदेश: जाने खजुराहो के बारे में..पूरा इतिहास, एक मंदिर जो दुनिया के लिए अजूबा है..

खजुराहो : विविधताओं से भरी मध्यप्रदेश की धरती पर जहां सुंदर पर्वत मालाएं, घने जंगल और गहरी घाटियां प्रकृति के अनमोल खजाने का नायाब तोहफा है, वहीं खजुराहो के मंदिरों पर उत्कीर्ण प्रतिमाएं 10वीं और 11वीं शताब्दी की भारतीय स्थापत्य कला का स्मरण कराती हैं। 

यूनेस्को ने खजुराहो को पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के कारण विश्व धरोहर घोषित किया है। खजुराहो प्रदेश में विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। वर्ष 2018 में कुल 419939 पर्यटक खजुराहो आए, इनमें से 57138 विदेशी पर्यटक थे।

खजुराहो के ये भव्य मंदिर इतिहास की किंवदंतियां नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की कला व संस्कृति के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो के इन मंदिरों का निर्माण काल ईस्वी 950 से लेकर 1050 के बीच माना जाता है। तब लगभग वहां 85 मंदिर बनाए गए थे, लेकिन अब इनकी संख्या कम होती जा रही है। 

खजुराहो के मंदिरों को भौगोलिक दृष्टि से तीन भागों में बांटा गया है। यह समूह है पश्चिमी समूह, पूर्वी समूह और दक्षिण समूह, पश्चिमी समूह में लक्ष्मण मंदिर, कंदरिया महादेव, चौंसठ योगिनी, चित्रगुप्त मंदिर विश्वनाथ और मातंगेश्वर मंदिर है। कहा जाता है कि लक्ष्मण मंदिर बनाने हेतु मथुरा से सोलह हजार शिल्पी यहां लाए गए थे। इस मंदिर को हर्षवर्मन के पुत्र यशोवर्मन ने बनाया था। यहां भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है। 

कंदरिया महादेव मंदिर यहां के सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है। 31 मीटर ऊंचा यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव का यह मंदिर मध्ययुगीन स्थापत्य एवं शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। कहा जाता है कि जब महाराजा विद्याधर दूसरी बार भी मुहम्मद गजनवी को परास्त कर भागने में सफल हुए, तब उन्होंने इसे भगवान शिव की कृपा माना एवं भगवान शिव के इस विशाल मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर 117 फुट लंबा एवं 66 फुट चौड़ा है। इस मंदिर के गर्भगृह में संगमरमर का बना हुआ शिवलिंग है। जो अमरनाथ के शिवलिंग का प्रतीक है। मंदिर का हर भाग दर्शनीय है चाहे वह छत हो, प्रवेश द्वार हो या भीतर के खम्भे हों यहां शिल्पकारों को शिल्पकला वास्तविक कमाल देखने को मिलता है। जिन्होंने अप्सराओं के शरीर में छैनी-हथौड़े से गढ़े गहने और वस्त्रों में वास्तविकता का पुट भर दिया है।

ग्रेनाइट पत्थर से बना चौंसठ योगिनी मंदिर खजुराहो का सबसे पुराना मंदिर है। 9वीं शताब्दी के लगभग बना यह मंदिर चंदेल राजवंश के अस्तित्व में आने के लगभग 300 वर्ष पूर्व से यहां है। इस मंदिर की यहां उपस्थिति इस बात की द्योतक है कि चंदेलों के अस्तित्व में आने के पहले यहां तन्त्र दर्शन का बहुत प्रभाव था, क्योंकि 64 योगिनियों को पूजा तांत्रिकों के द्वारा ही की जाती थी। 

पूर्व दिशा की ओर स्थित चित्रगुप्त मंदिर सूर्य को समर्पित है। रथ पर घोड़ों पर सवार भगवान सूर्य की 5 फुट ऊंची मूर्ति अपनी भव्यता के दर्शन कराते हुए पर्यटकों को मोह लेती है। धंग देव बर्मन के पुत्र महाराजा गण्ड देव बर्मन द्वारा निर्मित इस मंदिर के नामकरण को लेकर माना जाता है कि चित्रगुप्त नामक देवता मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। गर्भगृह में स्थित रक्षा रूढ़ भगवान सूर्य की प्रतिमा के दाहिने ओर हाथ में लेखनी लिए चित्रगुप्त की प्रतिमा स्थापित की गई हालांकि अब उनका खंडित रूप नजर आता है। इस मंदिर में चंदेलकाल के जनजीवन का सजीव चित्रण हुआ है। जुलूस आखेट और समूह नृत्य के दृश्य उस काल विशेष की जीवन शैली को यहां दर्शाते हैं।

खजुराहो के प्रमुख मंदिरों में शरीक ब्रह्मा की त्रिमुखी मूर्ति से आसीन विश्वनाथ मंदिर जिसके सामने सीढ़ियों पर उत्तर की ओर शेरों की प्रतिमाएं हैं तो दक्षिणी ओर हाथियों की कतारें हैं। चंदेल राजाओं द्वारा बनवाये गए मतंगेश्वर मंदिर में आज भी भक्तजन शिव की पूजा अर्चना करते हैं। इस मंदिर में आठ फुट ऊंचा शिवलिंग मंदिर के भीतर है तो बाहर गणेश जी की भव्य मूर्ति भक्तों को आशीर्वाद देती पहरा देती सी प्रतीत होती है। 

इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसमें महाराजा हर्षवर्मन ने भटकतमणी नामक मणी की स्थापना की थी, इस मणि को भगवान शिव ने खुद युधिष्ठिर को दिया था और युधिष्ठर से ही चलकर यह मणि हर्षवर्मन तक पहुंची थी। इस मणि की स्थापना के उपरान्त ही वृहद जंघा तथा लिंग की स्थापना की गई थी। बालू पत्थर का बना यह मंदिर शिल्पकारी की दृष्टि से बहुत ही असाधारण है। पूर्वी समूह में पार्श्वनाथ मंदिर, घैटाई मंदिर और आदिनाथ मंदिर का अपना अलग ही महत्व है। पार्श्वनाथ मंदिर 10वीं शताब्दी में बना है। यह जैन मंदिर विश्वनाथ मंदिर समकालीन माना जाता है। जैन मंदिर समूह में यह सबसे उल्लखनीय मंदिर है। बाहर से दो प्रमुख एवं एक तीसरी छोटे प्रकार की प्रतिमाओं की पंक्तियों से सुसज्जित यह मंदिर पंचरथ शैली का मंदिर है। 

घंटाई मंदिर में महावीर की माता के 16 स्वप्नों को दर्शाया गया है। साथ ही गरुड़ पर बैठी एक जैन देवी भी यहां दिखाई गई है। विद्वानों का मत है कि मंदिर मौलिक रूप में पार्श्वनाथ मंदिर के समान रहा होगा। इस मंदिर की छत भी सुन्दर दृश्यों से सुसज्जित है। महामंडप के प्रवेश द्वार पर चन्द्रेश्वरी की गरुड़ारूढ़ प्रतिमा है। जैन संत आदिनाथ को समर्पित आदिनाथ मंदिर अपने उत्कृष्ट शिल्प, आकृति और दक्षिणी प्रतिमाओं से सुसज्जित एक अलंकार युक्त मंदिर है। तीन हिन्दू मंदिर ब्रह्मा, वामन और जवारी मंदिर भी यहां दर्शनीय है। पूर्वी समूह के ये मंदिर भग्नावस्था में है, पर टूटे-फूटे इनके बुर्ज अपनी भव्यता से हमें परिचित कराते हैं।

दक्षिणी समूह में दुल्हादेव मंदिर और चतुर्भुज मंदिर स्थित है। दूल्हादेव मंदिर के दक्षिण में करीब 250 मीटर की दूरी पर स्थित भगवान शिव का यह मंदिर खजुराहो के चंदेल राजवंश के द्वारा बनवाए गए मंदिरों में से सबसे नया है। जब इस मंदिर की खोज हुई तो यह बहुत ही खंडित अवस्था में था। प्रवेश द्वार महामण्डप, अंतराल एवं गर्भगृह यह चार भाग इस मंदिर में है। इसके गर्भगृह में स्थित शिवलिंग सहस्त्र मुखी शिवलिंग है अर्थात इस शिवलिंग पर एक हजार और छोटे-छोटे शिवलिंग की पूजा करने से एक हजार एक शिवलिंग पूजने का फल प्राप्त होता है।

चतुर्भुज मंदिर वैसे तो आकृति की दृष्टि से एक छोटा मंदिर है। गर्भगृह एवं प्रवेश द्वार ही इस मंदिर में मिलते हैं। ललगुंवा महादेव मंदिर है जो कि पश्चिमाभिमुखी है। मंदिर की बाह्य दीवारों पर अंकित प्रतिमाएं उल्लेखनीय नहीं है फिर भी उत्तर की ओर के आले की नरसिंही की प्रतिमा जो देवी लक्ष्मी को नरसिंही रूप में ललित आसन में बैठे हुए दर्शाती है एवं दक्षिण की ओर के आले में बैठे अर्धनारीश्वर रूप में भगवान विष्णु की प्रतिमा उल्लेखनीय है खजुराहो के मंदिरों की निर्मिति में नागर शैली अपनी पराकाष्ठा पर पहुंची हुई है। 

अपने आकार, सौंदर्य और मूर्ति संपदा की दृष्टि से ये भारत के अन्य स्मारकों में अद्वितीय है। अपनी विशिष्टताएं लिए इन मंदिरों में उत्कीर्ण अभिप्रायों के ऊपर जंघा अथवा मंदिर की गवाक्षयुक्त बाह्य दीवारें है जिन पर मूर्तियों की दो या तीन समानांतर पंक्तियां हैं और इनके अंदर प्रकाश मिश्रित अंधकार का पवित्र वातावरण भी है।


 

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