महाभारत में ऐसे कई अवसर हैं जिनमें सुखी जीवन का आदर्श वाक्य बताया गया है। अगर इन सूत्रों को जीवन में लाया जाए तो हम कई समस्याओं से बच सकते हैं।
यहां जानें अहंकार से जुड़ी महाभारत की एक प्रेरक घटना। एक अवसर पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि अहंकारी नहीं होना चाहिए और कभी भी शत्रु को कमजोर नहीं समझना चाहिए।
अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध चल रहा था। दोनों योद्धा पूरी ताकत से लड़ रहे थे। जब अर्जुन का बाण कर्ण के रथ पर लगा तो उसका रथ 20-25 हाथ पीछे हट गया। कर्ण के प्रहार के समय अर्जुन का रथ थोड़ा ही पीछे हट रहा था।
इस पर भी भगवान कृष्ण के मुख से कर्ण की प्रशंसा सुनकर अर्जुन को अजीब लगा। उन्होंने भगवान कृष्ण से पूछा, "हे केशव, जब मैं कर्ण के रथ पर प्रहार करता हूं, तो उनका रथ बहुत पीछे हट जाता है, जबकि मेरा रथ उनके तीर से थोड़ा ही पीछे जाता है।"
कर्ण का बाण मेरे बाण की तुलना में बहुत कमजोर है, फिर भी आप इसकी प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?
भगवान कृष्ण ने उत्तर दिया, मैं स्वयं आपके रथ पर बैठा हूं। हनुमानजी ऊपर ध्वज के पास विराजमान हैं, शेषनाग स्वयं रथ का पहिया पकड़े हुए हैं। फिर भी कर्ण के प्रहार के कारण यह रथ थोड़ा पीछे हट रहा है। यानी उसके बाण कमजोर नहीं हैं।
मैं तुम्हारे साथ हूं और कर्ण के पास केवल उसकी शक्ति है। फिर भी वह आपको कठिन चुनौती दे रहा है। इसका मतलब है कि कर्ण कमजोर नहीं है। यह सुनकर अर्जुन का अभिमान टूट गया।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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