 Published By:बजरंग लाल शर्मा
 Published By:बजरंग लाल शर्मा
					 
					
                    
1 -- जो दिखाई देता है वह सत्य है, दिखाई देने वाला यदि मिट जाता है तब वह असत्य हो जाता है। स्वप्न दिखाई भी देता है तथा मिट भी जाता है इसलिए यह सत्य और असत्य का मिश्रण है।
2 -- दिखाई देने वाला तीन गुणों से प्रकट होता है तथा मिटने पर तीन गुणों में ही लीन हो जाता है।
3 -- तीन गुण अहंकार से प्रकट होते हैं तथा अहंकार में ही लीन हो जाते हैं।
4 -- अहंकार रूपी अंडा अक्षर पुरुष की चित्त की वृत्तियों (सत, रज, तम) से बना होता है। यह अंडा रचना करने वाले के चित्त में कल्पना रूपी बीज के रूप में स्थित होता है।
5 -- तीन गुण (सत, रज, तम) माया के अंग हैं। काल की प्रेरणा से यह त्रिगुणमयी माया क्षोभ को प्राप्त होकर मोह जल का रूप धारण कर लेती है। इस मोह जल को ही अंधकार रूपी नींद कहते हैं।
6 -- इस मोह जल में अक्षर पुरुष का प्रतिबिंब पड़ा, जिसमे उनकी चित्त की वृत्तियों का अहंकार रूपी अंडा बना जो मोहजल में हजारों वर्ष तक तैरता रहा।
7 -- जब अंडे में अक्षर पुरुष का मन (ज्योति स्वरूप) चेतन के रूप में प्रवेश किया तब वह अंडा सजीव होकर फूटा और उसमें से तीन गुण (सत, रज तथा तम) लिए काल पुरुष प्रकट हुए।
8 -- अक्षर पुरुष की नींद में अनेकों काल पुरुष उत्पन्न होते हैं और प्रत्येक काल पुरुष की नींद में अनेकों नारायण उत्पन्न होते हैं । प्रत्येक नारायण एक ब्रह्मांड का मालिक होता है और फिर प्रत्येक नारायण अपनी नींद में असंख्य जीवों सहित सृष्टि की रचना करते हैं । इस प्रकार यह संसार सपने के सपने का सपना है ।
9 -- इस प्रकार इस ब्रह्मांड सहित सारे जीव नारायण के चित्त में नींद में, सभी नारायण काल पुरुष के चित्त में नींद में तथा सभी काल पुरुष अक्षर पुरुष के चित्त में नींद में बनते हैं ।
10 -- जब महाप्रलय होती है तो प्रत्येक जीव ब्रह्मांड सहित नारायण के मन में फिर प्रत्येक नारायण अपने अपने जीवों तथा ब्रह्मांडों को समेटकर काल पुरुष के मन में और फिर प्रत्येक काल पुरुष अपने अपने नारायण को समेटकर और स्वयं भी अक्षर पुरुष के मन (ज्योति स्वरूप) में विलीन हो जाते हैं। इस प्रकार सब कारणों का कारण अक्षर पुरुष है जिसके चित्त में नींद के अंदर सब कुछ बनता है और मिट जाता है।
महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि-
"हद के पार बेहद है बेहद पार अक्षर
अक्षर पार वतन है जागिए इन घर।"
अक्षर पुरुष की नींद में बनने वाले तथा मिटने वाले जो भी ब्रह्मांड तथा जीव हैं उनकी भूमि को हद भूमि कहा गया है। अक्षर पुरुष का मन जिसमें यह मिटने वाला संसार बनता है वह बेहद भूमि है। बेहद भूमि के बाद अक्षर की भूमि आती है तथा इसके बाद पूर्णब्रह्म परमात्मा श्री कृष्ण अक्षरातीत का परमधाम है।
बजरंग लाल शर्मा
 
 
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