यदि बच्चे का गर्भधारण का काल तो पूरा हो गया है किंतु बच्चा अभी भी कम वजन का है अर्थात गर्भ के अंदर ही उसका विकास कम हुआ है तो ऐसे बच्चों की देखभाल पर पूरा ध्यान देना चाहिए। आइए समझते हैं कि कैसे करें ऐसे बच्चों की देखभाल।
पूरे नौ महीनों तक आयरन की गोलियां दें -
मां में खून की कमी गर्भस्थ शिशु पर दुष्प्रभाव छोड़ती है। अतः गर्भावस्था के दौरान मां को आयरन, कैल्शियम व फॉलिक एसिड की गोली अवश्य दें। फोलिक एसिड से बच्चे का स्नायुतंत्र मजबूत होता है। आयरन व फोलिक एसिड की गोलियां, सही तरह से ली जाए, निर्धारित मात्रा में ली जाए इसका पूरा ध्यान परिवार के सदस्यों को रखना होगा।
यही नहीं किशोरी बालिकाओं को भी वर्ष में कम से कम 3 माह आयरन की गोली अवश्य दें। क्योंकि यही वह नींव है जिस पर भविष्य के कई सपने आधारित है। किशोरी बालिका ही तो भविष्य की मां है।
याद रखें कि गर्भावस्था के दौरान क्षमता से अधिक काम न करना पड़े। पर्याप्त पोषण व खून की कमी भी न हो तो नवजात शिशु स्वस्थ होगा और खतरों से दूर ही रहेगा। ध्यान दें कि गर्भावस्था में मलेरिया या अन्य कोई संक्रामक रोग न हो। किसी भी तरह का संक्रमण सीधे-सीधे गर्भस्थ शिशु पर दुष्प्रभाव डालता है। पेशाब की जांच से संक्रमण व अन्य खराबी का पता लगाएं। गर्भावस्था में ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित रखने के लिए चिकित्सक से सलाह लें।
गर्भ से ही कम वजन लेकर पैदा हुए 'कुपोषित बच्चों की इस स्थिति को आई.यू.जी.आर. या इंट्रायूटेराइन ग्रोथ रिटार्डेशन भी कहते हैं। हमारे देश की यह प्रमुख समस्या है। नवजात का वजन इसलिए कम रह जाता है क्योंकि माता का गर्भकाल में पूरा पोषण नहीं हो पाता है।
हमारे देश में 100 में से 30 बच्चे कम वजन के पैदा होते है। इन बच्चों में कुछ विशेष परेशानियां होती है। जिनका विशेष ख्याल रखना पड़ता है। सामान्य बच्चों की तुलना में इनकी मृत्यु दर स्वाभाविक ही अधिक होती है।
ठंड से बचाएं इन्हें -
ठंड से बचने के जो शारीरिक संसाधन सामान्य बच्चों के शरीर में विकसित होते हैं, वे इन बच्चों में नहीं हो पाते हैं। यही वजह है कि ठंड लगने की वजह से कई दुष्परिणाम इन बच्चों में देखने को मिलते हैं। यहां तक कि ठंड के कारण इन बच्चों की मृत्यु भी हो जाती है।
इन बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है अतः दस्त, श्वसन के रोग व अन्य बीमारियां इन्हें जल्दी पकड़ लेती है। इनका शारीरिक विकास भी अन्य बच्चों की तुलना में अत्यंत धीमा होता है। चूंकि इनकी शारीरिक बढ़त मां के गर्भ में ही कम हो चुकी होती है अतः जन्म के बाद विशेष पोषण भी इनके शारीरिक विकास में कुछ फायदा नहीं करता है।
न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक विकास में भी ऐसे बच्चे पिछड़ जाते हैं। आपसी सामंजस्य, भाषा का विकास इनमें धीमा होता है कुल मिलाकर इनका बौद्धिक स्तर सामान्य बच्चों की तुलना में कम होता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024