Published By:अतुल विनोद

इंसान: एक नहीं अनेक मास्क लगाता है, एक दिखाता है बाकी छुपाता है.. अतुल विनोद

इंसान: एक नहीं अनेक मास्क लगाता है, एक दिखता है बाकी छुपाता है.. अतुल विनोद   आज सब चेहरे पर असली मास्क लगाकर घूम रहे हैं | इससे पहले भी लोगों ने क्या मास्क नहीं लगाये थे ? लगाए थे लेकिन वो मास्क दिखते नहीं | हम बचपन में ही मास्क लगाना सीख लेते हैं |  

एक व्यक्ति ना जाने कितने प्रकार का मास्क लगाता है ? चेहरे के दाग छिपाने के लिए मास्क, आँखों के नीचे का कालापन छिपाने के लिए मास्क | अपनी हर एक आदत को छुपाने के लिए हमें मास्क लगाना होता है |  इस दुनिया में बिना मास्क के जीना बड़ा मुश्किल है | शरीर की बाहरी कमजोरियां छुपाने के लिए तरह - तरह के मास्क हैं तो अंदर की कमजोरियां छुपाने के लिए भी मास्क होते हैं | 

 सच कितना कडवा होता है कि इसके उजागर होने के डर से हमारा पूरा व्यक्तित्व ही मास्क हो जाता है | असली पर्सनेलिटी तो छिप ही जाती है | लेकिन, दिखता है तो सिर्फ मास्क |  

अब तो ये मास्क अनिवार्य हो गया | लेकिन अनिवार्य ना होने के बाद भी ये मास्क मौजूद था | “एक नहीं” एक व्यक्ति अनेक मास्क लगा रहा था | ये बात अलग है कि हम दूसरे के मास्क को देख नहीं पाते थे | यदि हम खुदको देखेंगे तो पायेंगे कि हमने भी कितने मास्क लगा रखे हैं |    हमे बात-बात पर सच छिपाना पड़ता है | असलियत खोलना डराता है | मित्र,परिचित, रिश्तेदार हर जगह सच के सामने झूठ का मास्क ही प्रस्तुत होता है | 

इस दौर ने इंसान को ऐसा करने पर मजबूत कर दिया है | मुश्किल ये है कि मास्क लगाने की ज़रूरत क्या है ?  इसकी वजह है कोई दूसरा हमारा हित-चिन्तक नहीं | हमे डर अपने आप से नहीं, भय अपनों से ही है | ये डर सही भी है क्योंकि हमारी कमजोरी पता चलते ही हमारा अपना ही हमारा उपहास उड़ाता है | उस कमजोरी को हथियार बनाता है |     

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