 Published By:दिनेश मालवीय
 Published By:दिनेश मालवीय
					 
					
                    ऋषि पुलस्त्य ने पितामह भीष्म को कुरुक्षेत्र की सीमा में स्थित अनेक तीर्थों और उनके महत्त्व के विषय में बताया. उन्होंने कहा, कि व्यक्ति को ऋषियों द्वारा प्रशंसित कुरुक्षेत्र की यात्रा करनी चाहिए, जिसके दर्शन मात्र से जीव पापों से मुक्त हो जाता है. यहाँ तक कि वायु द्वारा उड़ाकर लायी गयी धूल भी शरीर पर पड़ जाए, तो मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है. जो लोग सरस्वती के दक्षिण और दृषद्वती के उत्तर कुरुक्षेत्र में निवास करते हैं, वे तो मानों स्वर्गलोक में ही रहते हैं.
तदनंतर वहाँ मचक्रुक नाम वाले द्वारपाल महाबली यक्ष को नमस्कार करने मात्र से हज़ार गायों के दान का पुण्य प्राप्त होता है. इसके बाद भगवान् विष्णु के परम उत्तम सतत नामक तीर्थ में जाना चाहिए, जहाँ श्रीहरि सदा निवास करते हैं. वहाँ स्नान और त्रिलोकभावन भगवान् श्रीहरि को नमस्कार करने से मनुष्य को अश्वमेधयज्ञ का फल मिलता है.
इसके बाद परिप्लव नामक तीर्थ में जाना चाहिए, जहाँ स्नान करने से अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञों का फल मिलता है. वहाँ पृथ्वीतीर्थ में जाकर स्नान करना चाहिए. इस तीर्थ के सेवन के बाद शालूकिनी में आकर दशाश्वमेधतीर्थ में स्नान कर ने से बहुत पुण्य मिलता है. सर्पदेवी में जाकर उत्तम नागतीर्थ का सेवन करना चाहिए. वहाँ से तरन्तुक नामक द्वारपाल के पास जाकर एक रात निवास करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है. इसके बाद पंचनदतीर्थ में जाकर वहाँ कोटितीर्थ में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है. तद्तंत्र जयन्ती में सोमतीर्थ के निकट जाकर स्नान करना चाहिए. एकहंस तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को एक हज़ार गायों के दान का फल मिलता है. कृतशौचतीर्थ में जाने से पुण्डरीकयज्ञ का फल मिलता है और मन शुद्ध हो जाता है.
इसके बाद लोकविख्यात यक्षिणीतीर्थ है, जहाँ स्नान करने से सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं. वह कुरुक्षेत्र का विख्यात द्वार है, जिसकी परिक्रमा करके तीर्थयात्री एकाग्रचित्त हो पुष्कर तीर्थ के तुल्य उस तीर्थ में स्नान कर देवताओं और पितरों का पूजन करता है. इस तीर्थ का निर्माण भगवान् परशुराम ने किया था. इसके बाद परशुराम कुंड है, जहाँ परशुरामजी ने सम्पुर्ण क्षत्रियकुल का संहार करके पाँच कुण्ड स्थापित किये थे. ऐसा कहा जाता है, कि परशुरामजी ने इन कुंदों को दुष्ट राजाओं के रक्त से भरकर उसमें अपने पितरों का तर्पण किया था.
इसके बाद लोकोद्धार तीर्थमें जाना चाहिए, जो तीनों लोगों में पूजित है. वहाँ पूर्वकाल में भगवान् विष्णु ने कितने ही लोकों का उद्धार किया था. कपिलातीर्थ में जाकर स्नान और देव-पितरों का पूजन करने से सहस्त्र कपिला गायों के दान का फल मिलता है. इसके बाद सूर्यतीर्थ में स्नान-ध्यान करना चाहिए. तदनन्तर शंखिनीतीर्थ में जाकर स्नान से पुण्य फल मिलता है. फिर अरन्तुक द्वारपाल के पास जाकर सरस्वती स्नान करने से अग्निष्टोम यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है. इसके बाद ब्रह्मावर्ततीर्थ को जाकर स्नान करना चाहिए. वहाँ से उत्तम सुतीर्थ में जाकर देवता-पितरों का पूजन और स्नान करना चाहिए. वहाँ से अम्बुमती और फिर काशीश्वर तीर्थ में जाना चाहिए. वहीं मातृ तीर्थ है, जिसमें स्नान करने से संतति बढ़ती है और सदा रहने वाले भोगों की प्राप्ति होती है.
ऋषि पुलस्त्य ने कहा, कि इसके बाद वहाँ श्वाविल्लोमाव नामक तीर्थ में जाना चाहिए. इसके बाद दशाश्वमेधतीर्थ और फिर मानुषीतीत्ढ़ में जाना चाहिए. इसके बाण उन्होंने ब्रहमोदुम्बर तीर्थ के विषय में बताया. वहां सप्तऋषि कुण्ड है. उन कुण्डों और कपिल के केदारतीर्थ में स्नान करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके बाद उन्होंने सरकतीर्थ के बारे में बताया, जहाँ कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को भगवान् शकर का दर्शन करने से सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है. ये सभी तीर्थ रूद्रकोटि में, कूप में और कुण्डों में हैं. वहीं इलास्पदतीर्थ है. वहाँ किन्दान और किनजप्य नामक तीर्थ भी हैं. पुलस्त्यजी ने कलशतीर्थ में आचमन का महत्त्व बताया. सरकतीर्थ में नारदजी का तीर्थ है, जो अम्बाजन्म के नाम से विख्यात है. फिर उन्होंने पुण्डरीकतीर्थ, त्रिविष्टपतीर्थ, फलकीवन, मिश्रकतीर्थ, मधुवती, कौशिकी और दृषद्वती के संगम में स्नान का महत्त्व बताया.
इसके बाद पुलस्त्यजी ने व्यासस्थली के बारे में बताया, जहाँ परम बुद्धिमान व्यासजी ने पुत्रशोक से संतप्त हो शरीर के त्याग का विचार किया था. उस समय देवताओं ने उन्हें पुन: उठाया था. इस स्थल पर जाने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है. फिर उन्होंने किंदत्त कूप में सोलह मुट्ठी तिल दान का महत्त्व बताया. इससे मानुष तीनों ऋणों से मुक्त हो जाता है. उन्होंने अहन और सुदिन, मृगधूम,वामनतीर्थ, कुलामपुनतीर्थ, अमरह्रुद, शालिहोत्र के शालिसूरी, श्रीकुंज, नैमिष्कुंज, कन्यातीर्थ, ब्रह्मतीर्थ, सोमतीर्थ, सप्तसारस्वततीर्थ, अग्नि तीर्थ, ब्रह्मयोनितीर्थ, पृथूदकतीर्थ, मधुस्रवतीर्थ, अर्ध्कील, शतसहस्त्र और साहस्त्र तीर्थों के बार में बताया. इसके बाद रेणुकातीर्थ, विमोचनतीर्थ, पंचवटीतीर्थ, अनरकतीर्थ, गंगाह्रुद कूप, आपगा, स्थाणुवटतीर्थ, बदरीपाचन स्थित बसिष्ठ के आशरम, एकरात्रतीर्थ, सोमतीर्थ, दधीची के धाम, मचक्रुक सहित कुछ अन्य तीर्थों और उनके महात्म्य के विषय में बताया.
 
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