Published By:धर्म पुराण डेस्क

दारुल उलूम में हिन्दू-सिख ग्रंथ होने का मतलब, यह बहुत अच्छा तो है, लेकिन..

दारुल उलूम में हिन्दू-सिख ग्रंथ होने का मतलब, यह बहुत अच्छा तो है, लेकिन।। दिनेश मालवीय अखवार में एक ऎसी ख़बर पढने को मिली, जो बहुत चौंकाने वाली है। इसके अनुसार उत्तरप्रदेश के सहारनपुर स्थित देवबंद के मदरसे में क़ुरान शरीफ के साथ ही कुछ हिन्दू और सिख ग्रंथ रखे हुए हैं। ख़बर के अनुसार वहां बच्चे चौपाइयां और श्लोक भी पढ़ते हैं। ख़बर के साथ इस बात की पुष्टि करने वाले फोटो भी दिए गए हैं। इसके अलाव, मदरसा परिसर में तुलसी के पौधे होने की बात भी लिखी गयी है और इसके भी फोटो दिए गए हैं। 

बताया गया कि वहां के कर्मचारियों ने कहा कि ये पूरे हिंदुस्तान के ग्रंथ हैं। किसी भी सच्चे भारतीय के लिए आज के साम्प्रदायिक तनाव से भरे इस माहौल में इससे सुंदर और आनंद देने वाली ख़बर क्या हो सकती है। हाल ही  में इस मदरसे के प्रिंसिपल जनाब अरशद मदनी  ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की इस बात का भी समर्थन किया था कि, हिन्दू और मुसलमान एक ही पुरखों की संतानें हैं। हालाकि मदनी ने एक इंटरव्यू में अफगानिस्तान में तालिबान को आतंकवादी मानने से इनकार करते हुए कहा था कि वे फ्रीडम फाइटर हैं। 

उन्होंने अपने देश को आज़ाद करने की लड़ाई लड़ी। उनके अनुसा0र यदि तालिबान आतंकवादी हैं, तो फिर भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले गांधी और नेहरू भी आतंकवादी थे। मदनी के इस बयान में गांधी-नेहरू और तालिबान को एक जैसा कहना बहुत अनुचित है। गांधी-नेहरू ने आज़ादी की पूरी लड़ाई में न कभी हिंसा की और न हिंसा की वकालत की।  तालिबान और हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की बराबरी की बात बहुत बेतुकी है। बहरहाल, मदरसे में हिन्दू और सिख ग्रंथ रखे जाने की बात बहुत उत्साहजंक है। विविधता में एकता ही हमारे देश की सबसे बड़ी शक्ति है। 

यह सारी दुनिया के लिए आश्चर्य की बात है कि भारत में 122 भाषाएँ और 1599 बोलियाँ बोली जाती हैं।यहाँ तीन हज़ार से ज्यादा जातियां अरु 25 हज़ार  से ज्यादा उप-जातियां हैं। यह सभी धर्मों और समुदायों के लोग रहते हैं। इसके बावजूद छोटे-मोटे मतभेद और कभी-कभार होने वाले छिटपुट के बावजूद भारत में अद्भुत एकता है। दुनिया के अनेक देश ऐसे हैं, जहाँ एक-दो धर्मों या समुदाओं के लोग रहते हैं, लेकिन वहां हमेशा मारकाट और खूनख़राबा चलता रहता है। यहाँ तक कि एक ही धर्म और एक ही ग्रंथ को मानने वाले लोगों में हिंसक वारदातें होती रहती हैं। प्रोटेस्टेंट  और केथोलिकों  तथा शिया और सुन्नियों के बीच टकराव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 

भारत में भी थोडा-बहुत कुछ चलता रहता है, लेकिन 135 करोड़  की आबादी के अनुपात में ये घटनाएं कोई महत्त्व नहीं रखतीं। आज हालत बहुत तनावपूर्ण लग रहे हैं, लेकिन इस देश के लोगों का डीएनए ऐसा है ही नहीं कि यहाँ अफगानिस्तान या अन्य किसी देश जैसे हालात बन जाएँ। अधिकतर तनावपूर्ण स्थितियों के पीछे कारण सियासी होते हैं। इसके अलावा इसके लिए मीडिया का ग़ैर-जिम्मेदार रवैया भी कम दोषी नहीं है। अखवार तो अपनी जगह जैसे हो गये हैं, वह हैं ही, लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया छोटी-छोटी बातों को इतना तूल देता है कि, ऐसा लगता है कि, वे बहुत बड़ी लगने लगती हैं।

किसी छुटभैया नेता ने कुछ ऎसी बात कह दी जो देश की शान्ति के लिए ख़तरनाक है, तो उसकी अनदेखी करने के बजाय उसे ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह दिखाया जाता है। उस पर छाती-माथा-कूट डिबेट्स कराई जाती हैं। देखने वालों को लगता है कि, न जाने क्या विनाश होने वाला है। चलिए पत्रकारिता धर्म निभाना ज़रूरी है, लेकिन इस तरह की घटनाओं की अनदेखी करना इससे भी बेहतर पत्रकारीय धर्म है। 

जहाँ तक दारुल उलूम में हिन्दू और सिख धर्मों के रखे जाने की बात है, तो इस विषय में एक बात कहना ज़रूरी समझता हूँ कि, हिन्दू धर्म के मूल ग्रंथ उपनिषद हैं। वे ही बाक़ी सारी पुस्तकोण और ग्रंथों के स्रोत हैं। कोई महाकाव्य है तो कोई कथा आदि, जिनमें अनेक तरह के विम्बों, प्रतीकों, रूपकों आदि के द्वारा मूल सनातन धर्म-दर्शन के संदेश दिए जाते हैं। यदि वहां रखी गये सनातन धर्म के ग्रंथों में उपनिषदों को भी रखा जाए, तो इसकी सार्थकता बहुत बढ़ जायेगी। इससे मदरसे के बच्चे धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन बेहतर ढंग से करने में मदद मिलेगी। उनके मन में दूसरे धर्मों के प्रति सही जानकारी का जो अभाव है, वह दूर हो सकेगा।

 

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