प्रश्न- चित्तशुद्धी का साधन क्या है और यह कब समझना चाहिये कि चित्त शुद्ध हो गया?
उत्तर- चित्तशुद्धी के लिये दो बातों की आवश्यकता है- विवेक और ध्यान। केवल आत्मा और अनात्मा का विवेक होने पर भी यदि ध्यान के द्वारा उसकी पुष्टि नहीं की जाएगी तो वह स्थिर नहीं रह सकेगा। इसके सिवा इस बात की भी बहुत आवश्यकता है कि हम दूसरों के दोष न देखकर निरंतर अपने चित्त की परीक्षा करते रहें ।
जिस समय चित्र में राग-द्वेष का अभाव हो जाए और चित्त किसी भी दृश्य पदार्थ में आसक्त न हो, उस समय समझना चाहिये कि चित्त शुद्ध हुआ। परंतु राग-द्वेष से मुक्त होने के लिये परमात्मा और महापुरुषों के प्रति राग होना तो परम आवश्यक है।
प्रश्न- राग-द्वेष किसे कहते हैं?
उत्तर-जिस समय मनुष्य नीति को भूल जाए, उसे सदाचार के नियमों का कोई ध्यान न रहे, तब समझना चाहिये कि वह राग-द्वेष के अधीन हुआ है-राग-द्वेष का मूल अहंकार है। अहंकार के आश्रित ही ममता और परत्व की भावनाएँ रहती हैं। ममता ही राग है और परत्व ही द्वेष है।
श्री उड़िया बाबा
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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