 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मानसिक रोगों का कारण यूट्यूब शरीर की कोई विकृति हार्मोन असंतुलन या अन्य साइंटिफिक रीजंस को माना जाता है लेकिन अध्यात्म में मानसिक रोगों के पीछे व्यक्ति के प्रारब्ध के कर्म फल अशुभ और नकारात्मक ऊर्जाएं या प्रज्ञा अपराध कारण होता है।
मानसिक रोगों का कारण ..
प्रज्ञापराध-
महर्षि चरक के अनुसार बुद्धि, धैर्य, स्मरण शक्ति का नाश एवं विभ्रंश से युक्त मनुष्य जो भी अशुभ कर्म करता है उसको प्रज्ञापराध कहा जाता है, क्योंकि प्रज्ञापराध से ही सभी दोष कुपित होते हैं.
बुद्धि विभ्रंशः नित्य तथा अनित्य एवं हित-अहित पदार्थ में विपरीत होने को बुद्धि विभ्रंश कहा जाता है.
धैर्य विभ्रंशः धृति का अर्थ है धैर्य. धैर्य ही नियम रूप है. विषयों में प्रबल व चिंतन व संकल्प योग्य विषयों में बलवत्तर हुए मन को अर्थ से, कर्म से एवं काल से रोकने में जब मनुष्य समर्थ नहीं होता है तब उसे धृति विभ्रंश कहते हैं.
स्मृतिभ्रंशः जिस मनुष्य की आत्मा व मन रजोगुण और तमोगुण युक्त हों, उनकी स्मृति तत्व ज्ञान में तथा तत्व ज्ञान से भ्रष्ट होती है, क्योंकि स्मरण योग्य जो विषय है। वह तो स्मृति में ही होता है. तत्वज्ञान में जिनकी स्मृति भ्रष्ट होती है उनको स्मृति भ्रंश कहा जाता है.
इस प्रकार मन, वचन और शरीर से होने वाले सभी अहित कर्म प्रज्ञापराध ही हैं.
ईर्ष्या, मान, भय, क्रोध, लोभ, मोह, मद तथा भ्रम से उत्पन्न निंदित कर्म करना एवं शरीर द्वारा उत्पन्न अन्य पाप कर्म करना और जो भी अन्य कर्म रजोगुण और तमोगुण से उत्पन्न होते हैं, उनको सभी रोगों का मूल कारण यानी प्रज्ञापराध कहा जाता है..
बुद्धि के अतियोग को भी प्रज्ञापराध कहा जाता है. बुद्धि द्वारा विषम ज्ञान + विज्ञान व बुद्धि से विपरीत ज्ञान और परिणामतः विषम एवं विपरीत प्रवृत्ति हो उनको भी प्रज्ञापराध कहा जाता है. इसके सिवाय जितने भी सत्कर्म हैं, उनका पालन नहीं करने से बुद्धि का विभ्रंश होता है. बुद्धि विभ्रंश से मन कलुषित होता है, मन कलुषित होने से मानस व्याधि का प्रादुर्भाव होता है.
 
 
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