Published By:धर्म पुराण डेस्क

शनिदेव का चमत्कारी मंदिर है यहाँ – जाने अद्भुत अनोखे मंदिर 

देश में शनिदेव के कई ऐसे चमत्कारी धाम है, जिनके दर्शन से भक्तों के दुखों का निवारण होता है। इन्हीं मंदिरों में से एक है मुरैना स्थित शनिधाम। 

माना जाता है कि यहां विराजमान भगवान शनि की मूर्ति आकाश से गिरे उल्का से बनी है। इसे देश का सबसे पुराना शनि मंदिर कहा जाता है। इसकी स्थापना त्रेता युग में हुई थी।

श्री शनिचरा मंदिर धार्मिक न्यास और धर्मस्व विभाग, मध्य प्रदेश सरकार के नियंत्रण में एक मंदिर है। श्री शनिचरा मंदिर क्षेत्र धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में यहां श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए कई विकास कार्यों और सुविधाओं का विस्तार किया गया है। 

हर शनिवार को मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, बिहार, गुजरात और विदेशों जैसे नेपाल, श्रीलंका, न्यूजीलैंड से हजारों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। 

शनिचरी अमावस्या पर यहां विशेष मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। शनिचरा पहाड़ी को सुंदर, सौम्य और हरी-भरी पहाड़ी बनाना, विभिन्न प्रकार की पर्यटक सुविधाओं का विस्तार करना, जैसे अलग-अलग बड़े नहाने के तालाब, वस्त्र समर्पण, नीचे से पीने के पानी की सुविधा, धर्मशाला, सभागार, बाजार अनुसंधान और योजना। 

एक आध्यात्मिक केंद्र और रोपवे पर विचार किया जा रहा है। आने वाले समय में शनिचरा मंदिर एवं इसके आसपास का क्षेत्र प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन स्थल एवं मुरैना जिले की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति का केन्द्र बनेगा, जिसके हम सभी साक्षी हैं। 

शनिदेव का यह मंदिर मध्य प्रदेश में ग्वालियर के पास ऐंती गांव में स्थित है। ज्योतिषियों और खगोलविदों के अनुसार इस मंदिर का महत्व अधिक है क्योंकि यह एकांत क्षेत्र और जंगल में स्थित है।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री शनिदेव मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। यह मंदिर त्रेता युग में मिला था।

राजसी दस्तावेजों के अनुसार 1808 में ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा दौलतराव सिंधिया ने मंदिर की व्यवस्था के लिए एक जागीर की स्थापना की थी। 

तत्कालीन शासक जीवाजीराव सिंधिया ने 1945 में जागीर को जब्त कर लिया और ग्वालियर के औकाफ बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के प्रबंधन के तहत धर्मस्थल को सौंप दिया।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस मंदिर में शनि की स्थापना बजरंगबली ने की थी। मंदिर के पास गिरे उल्कापिंड से बना गड्ढा आज भी दिखाई देता है।

माना जाता है कि शनि के इस चमत्कारी मंदिर में तेल चढ़ाने और छाया दान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

शनि के तेज के आगे सब कुछ निष्प्रभावी हो जाता है। जिस पर शनि की दिव्य दृष्टि पड़ती है, उसे भवसागर से पार होना समझना चाहिए। मुरैना जिले के इस शनिचरा मंदिर के बारे में एक कथा प्रसिद्ध है। 

कहा जाता है कि जब भगवान महाबली हनुमान रावण की लंका को जलाने वाले थे, तो उनकी नजर उस जगह पर पड़ी, जहां रावण ने शनि और अन्य देवताओं को बंदी बनाकर रखा था। भगवान शनि ने हनुमानजी से उन्हें रावण की कैद से छुड़ाने का अनुरोध किया। 

हनुमान ने तब भगवान शनि को रावण की कैद से मुक्त कराया। रावण की कैद से भगवान शनि कमजोर हो गए थे, इसलिए उन्होंने हनुमान से उन्हें सुरक्षित स्थान पर भेजने का अनुरोध किया। इसके बाद हनुमान शनि को यहां बने पर्वत पर ले आए। शनिदेव के कोप से रावण की लंका जल गई और उसका परिवार भी।
 

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