मनहरण घनाक्षरी
सूर्य - सुत शनिदेव,
धरा से मिटा कुटेव,
वसुधा के न्यायाधीश,
न्याय ही विचारते।
छाया-पुत्र बल-वीर,
जन की हरें वे पीर,
न्यायप्रिय तेज- वान,
भाग्य को सँवारते।।
पाएँ सब निज इष्ट,
कर्मनिष्ठ धर्मनिष्ठ,
यम के अग्रज शनि,
भव से उतारते।
प्रभु नील वर्ण रूप,
नील वस्त्र धारी आप,
यमुना के भ्राता वीर,
भय से उबारते।।
कौवे पे होते सवार,
हंस, भैंसा या सियार,
हाथी, घोड़ा, सिंह, मोर,
गधा पे सवारते।
साम, दाम, दंड, भेद,
अपनाते शनिदेव,
जैसी दशा, वैसी नीति,
समय पे धारते।।
जब करें दृष्टिपात,
ढाई साल, साढ़े सात,
अधर्म अनीति वाले,
जन को सुधारते।
जो है हनुमान भक्त,
करें नहीं उन्हें त्रस्त,
धर्म - निष्ठ मनुजों पे,
दया - दृष्टि धारते।।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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