Published By:धर्म पुराण डेस्क

मूलबंध हठयोग में एक महत्वपूर्ण अभ्यास है 

मूलबंध और हठयोग:

मूलबंध हठयोग में एक महत्वपूर्ण अभ्यास है जो कुण्डलिनी शक्ति को जागरूक करने में मदद करता है। यह एक प्रकार का बंधन है जो अपान वायु को प्राण वायु के साथ मिलाकर शक्ति को ऊर्ध्वगामी बनाने का प्रशिक्षण देता है।

मूलबंध का अभ्यास:

मूलबंध में, अपान वायु को मूल (गुदा) स्थान पर संकोचित किया जाता है और यहां से प्राण वायु के साथ मिलता है। इस अभ्यास से ऊर्ध्वगामी शक्ति को जागरूक किया जाता है, जो कुण्डलिनी की ऊर्जा को सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से ऊपरी चक्रों में ले जाने में सहायक होती है।

प्राण और अपान का संयोग:

मूलबंध के माध्यम से प्राण वायु और अपान वायु का संयोग होता है, जिससे योगी अपनी ऊर्जा को ऊपरी चक्रों में ले जाता है। यह संयोग कुण्डलिनी शक्ति को जागरूक करने में मदद करता है और योगी को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में आगे बढ़ने में सहायक होता है।

हठयोग में मूलबंध:

हठयोग के अंगों में, मूलबंध एक महत्वपूर्ण प्राणायाम और बंधन की तकनीक है जो शक्ति संचारित करने में मदद करता है। इसका प्रशिक्षण ध्यान और धारणा के साथ मिलता है, जिससे योगी अपने मन को नियंत्रित करके ऊर्ध्वगामी साधना में प्रगट हो सकता है।

मूलबंध के लाभ:

मूलबंध से शरीर की ऊर्जा को ऊपरी चक्रों में पहुंचाने में सहायक होता है और योगी को आत्मा के साथ एकाग्रता की स्थिति में ले जाता है। यह मानव शरीर की ताकत और स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है।

मूलबंध का नियमित अभ्यास करने से योगी आत्मा के साथ एक संतुलित और शांत जीवन का आनंद लेता है। इस प्रकार, मूलबंध हठयोग का एक महत्वपूर्ण अभ्यास है जो कुण्डलिनी शक्ति को जागरूक करने और आत्मा के साथ संयुक्त होने में मदद करता है।

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